आर्तव चक्र
आर्तव चक्र मादा प्राइमेटों (यानी बंदर, कपि एवं मनुष्य आदि) में होने वाले जनन चक्र को आर्तव चक्र (मेन्सट्रअल साइकिल) या सामान्य
जनों की भाषा में मासिक ध्र्म या माहवारी कहते हैं। प्रथम ऋतुस्राव/रजोध्र्म (मेन्सट्रएशन) की शुरूआत यौवनारंभ
पर शुरू होती है, जिसे रजोदर्शन (मेनार्वेफ) कहते हैं। स्त्रिायों में यह आर्तव चक्र प्रायः 28/29 दिनों की अवधि के बाद दोहराया
जाता है, इसीलिए
एक रजोधर्म से दूसरे रजोध्र्म के बीच घटना चक्र को आर्तव चक्र (मेन्सट्रअल साइकिल) कहा जाता
है। प्रत्येक आर्तव चक्र के मध्य में एक अंडाणु उत्सर्जित किया जाता है या अंडोत्सर्ग
होता है। आर्तव चक्र की प्रमुख घटनाओं को चित्रा 3.9 में दर्शाया गया है। आर्तव चक्र की
शुरूआत आर्तव प्रावस्था से होती है जबकि रक्तस्राव होने लगता है। यह रक्तस्राव 3-5
दिनों तक जारी रहता
है। गर्भाशय से इस रक्तस्राव का कारण गर्भाशय की अंतःस्तर परत और उसकी रक्त वाहिनियों
के नष्ट होना है जो एक तरल का रूप धारण करता है और योनि से बाहर निकलता है। रजोधर्म
तभी आता है जब मोचित अंडाणु निषेचित नहीं हुआ हो। रजोध्र्म की अनुपस्थिति गर्भ धरण
का संकेत है। यद्यपि इसके अन्य कारण जैसेकृ तनाव, निर्बल स्वास्थ्य आदि भी हो सकते
हैं। आर्तव प्रावस्था के बाद पुटकीय प्रावस्था आती है। इस प्रावस्था के दौरान गर्भाशय
के भीतर के प्राथमिक पुटक में वृध्दि होती है और यह एक पूर्ण ग्रापफी पुटक बन जाता
है तथा इसके साथ-साथ गर्भाशय में प्रचुरोद्भवन (प्रोलिपफरेशन) के द्वारा गर्भाशय
अंतःस्तर पुनः पैदा हो जाता है। अंडाशय और गर्भाशय के ये परिवर्तन पीयूष ग्रंथि तथा
अंडाशयी हार्मोन की मात्रा के स्तर में बदलावों से प्रेरित होते हैं। पुटक प्रावस्था
के दौरान गोनैडोट्राॅपिन (एल एच एवं एपफ एस एच) का स्रवण धीरे-धीरे बढ़ता है। यह स्राव
पुटक परिवर्धन के साथ-साथ वधर््मान पुटक द्वारा ऐस्ट्रोजन के स्रवण को उद्दीपित करता
है। एल एच तथा एपफ एस एच दोनों ही आर्तव चक्र के मध्य (लगभग 14वें दिन) अपनी उच्चतम स्तर को प्राप्त
करते हैं। मध्य चक्र के दौरान एल एच का तीव्र स्रवण जब अध्कितम स्तर पर होता है,
तो इसे एल एच सर्ज
कहा जाता है। यह ग्रापफी पुटक को पफटने के लिए प्रेरित करता है, जिसके कारण अंडाणु मोचित
हो जाता है यानी अंडोत्सर्ग (ओवुलेशन) होता है। अंडोत्सर्ग के पश्चात् पीत प्रावस्था होती
है, जिसके दौरान
ग्रापफी पुटक का शेष बचा हुआ भाग पीत पिंड (कार्पस ल्युटियम) का रूप धारण कर
लेता है। यह पीत पिंड भारी मात्रा में प्रोजेस्ट्रान स्रवित करता है, जो कि गर्भाशय अंतःस्तर को
बनाए रखने के लिए आवश्यक है। इस प्रकार गर्भाशय अंतःस्तर निषेचित अंडाणु के अंतर्रोपण
(इम्प्लांटेशन)
तथा सगर्भता की अन्य घटनाओं के लिए आवश्यक है। सगर्भता के दौरान आर्तव चक्र की सभी
घटनाएँ बंद हो जाती हैं इसीलिए इस समय रजोध्र्म नहीं होता है। जब निषेचन नहीं होता
है, तो पीत
पिंड में ”ास होता है और यह अंतःस्तर का विखंडन करता है, जिससे कि पिफर से रजोध्र्म का नया
चक्र शुरू हो जाता है यानी माहवारी पुनः होती है। स्त्री में यह आर्तव चक्र 50
वर्ष की आयु के लगभग
बंद हो जाता है इस स्थिति को रजोनिवृत्ति (मीनोपोज) कहा जाता है। इस प्रकार रजोदर्शन से लेकर रजोनिवृत्ति
की अवस्था में चक्रीय रजोध्र्म सामान्य जनन अवधिका सूचक है।
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