सफलता के चार उदाहरण





नौकर से राष्ट्रपति
ओहिया के जंगल में गारफील्ड अपनी विधवा माँ के साथ रहता था। माँ जंगल में लकड़ी काटने जाती तो लड़के को झोपडी में ताले में बंद कर जाती ताकि वह जानवरों से भी बचा रहे। रात में वह उसे कुछ न कुछ पढ़ाती।
      कुछ दिनों बाद माँ बेटे ने एक खच्चर ले लिया व उस पर लकड़ी लाद कर बेचते। गारफील्ड ने एक पुस्तकालय में नौकरी की व पढाई भी जारी रखी।
      वह ग्रेजुएट हो गया, साथ ही उसे नई नौकरी भी मिली।
      नौकरी करते हुए बचे हुए समय में गारफील्ड समाज सेवा करता। इससे लोग उसे पहचानने लगे।
      प्रगति पथ की अनेक मंजिलें लांघता वह अमेरिकी राज्यसभा का सदस्य चुन लिया गया। उससे अगले चुनाव में वह राष्ट्रपति बन गया। जो किसी की प्रतीक्षा न कर स्वयं पुरुषार्थ करते है वे अपनी संकल्पशक्ति से लक्ष्य को प्राप्त कर के रहते है।

हक़ की कमाई
बोस्टन से जब फ्रेंकलिन न्यूयार्क पहुचे तो काफी कोशिशो के बावजूद उन्हें काम नहीं मिला। एक बार कीमर नामक छापखाने से जब वह निराश हो कर लौट रहे थे तो प्रेस के मालिक ने रोका, मेरा एक हैण्ड प्रेस ख़राब पड़ा है क्या तुम उसे ठीक कर सकते हो?
जी, लेकिन इसमें पूरा दिन लग सकता है, प्रेस देख कर फ्रेंकलिन बोले।
कीमर ने दिनभर की मजदूरी की पूरी बात करली। फ्रेंकलिन ने उस मशीन की खराबी को दोपहर तक ठीक कर दिया। प्रेस मालिक ने उन्हें पुरे दिन का वेतन देकर विदा करना चाहा। तभी आधे दिन का पैसा वापस करते हुए फ्रेंकलिन बोले, आधा दिन का काम कर मैं आधी मजदूरी का हक़दार हु। यही मेरी हक की कमाई है।



सदा सचेते रहें
एक बुढा अनेक युवकों को वृक्ष पर चढ़ने उतरने की तकनीक सिखा रहा था। वृक्ष पर चढ़ते समय बहुत सावधानी बरतनी चाहिए, उसने कहा।
      इस में कौन सी नई बात है, कहते हुए एक युवक तेजी से वृक्ष पर चढ़ने लगा। बुढा उसे चुपचाप देखता रहा।
      जब वह पेड़ की चोटी तक पहुचकर नीचे उतरने लगा तब बूढ़े ने उसे चेताया देखो, सावधानी से।
      फिर जब वह नीचे पहुचने ही वाला था तब ही बुढा बोला, देखो, सचेत रहो।
      नीचे आकर युवक ने क्रोधित हो कर कहा, जब मैं ऊपर चढ़ा तो आप कुछ नहीं बोले लेकिन जब मैं उतरा तो आप ने मुझे सचेत रहने को कहा जबकि मैं तो लगभग उतर ही चूका था।
      उस के मनोभाव समझ कर बूढ़े ने समझाया, क्योंकि अकसर अंतिम समय में लक्ष्य को निकट जान कर हम असावधान हो जाए है और मौका चुक जाता है। अत हमें सदा सचेत रहना चाहिए। इसी में समझदारी है।
      युवक उन की बात समझ गया।

दुर्गुणों का त्याग
महावीर के शिष्यों में चर्चा चल रही थी कि मनुष्य के पतन का क्या कारण है। किसी ने कामवासना बताया तो किसी ने अहंकार। तब वे अपनी शंका दूर करने के किये महावीर के पास गये।
      महावीर ने शिष्यों से पूछा, मेरे पास एक ऐसा कमंडल है, जिस में बहुत सा जल समा सकता है। अगर उसे नदी में छोड़ दिया जाए तो क्या वह डूबेगा?
      कभी नहीं, एक शिष्य बोला।
      अगर उसमे एक छेद हो जाए तो? महावीर ने पूछा।
      तब तो डूबेगा ही, सभी शिष्य एक साथ बोले।
तब महावीर ने कहा, बस, समझ लो की जीवन उस कमंडल के समान है जिस में दुर्गुण रूपी छेद जहाँ हुआ, समझ लो की डूबने वाला है। अत अपने दुर्गुणों का त्याग कर मनुष्य पतन से बच सकता है।
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