बंध्यता क्या है : निवारण

बंध्यता
बंध्यता के बारे में चर्चा किए बिना जनन स्वास्थ्य पर चर्चा अधूरी है। भारत सहित पूरी
दुनिया में बहुत से दंपति बंध्य हैं अर्थात् उन्मुक्त या असुरक्षित सहवास के बावजूद वे
बच्चे पैदा कर पाने में असमर्थ होते हैं। इसके अनेक कारण हो सकते हैं, जोकि शारीरिक,
जन्मजात, रोग जन्य, औषधिक, प्रतिरक्षात्मक और यहाँ तक कि वे मनोवैज्ञानिक भी हो
सकते हैं। भारतवर्ष में प्रायः दंपतियों में बच्चा न होने का दोष स्त्रिायों को ही दिया जाता है, जबकि प्रायः ऐसा नहीं होता है, यह समस्या पुरुष साथी में भी हो सकती है। विशिष्ट स्वास्थ्य सेवा इकाइयाँ (बंध्यता क्लीनिक आदि) नैदानिक जाँच में सहायक हो सकती हैं और इनमें से कुछ विकारों का उपचार करके दंपतियों को बच्चे पैदा करने में मदद दे सकती हैं। फिर भी, जहाँ ऐसे दोषों को ठीक करना संभव नहीं है वहाँ कुछ विशेष तकनीकों द्वारा उनको बच्चा पैदा करने में मदद की जा सकती है, ये तकनीक सहायक जनन प्रौद्योगिकियाँ (ए आर टी) कहलाती हैं।
पात्रे निषेचन (आई वी एफ- इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन अर्थात् शरीर से बाहर लगभग
शरीर के भीतर जैसी स्थितियों में निषेचन) के द्वारा भ्रूण स्थानांतरण (ई टी) ऐसा एक
उपाय हो सकता है। इस विधि में, जिसे लोकप्रिय रूप से टेस्ट ट्यूब बेबी कार्यक्रम के
नाम से जाना जाता है, इसमें प्रयोगशाला में पत्नी का या दाता स्त्री के अंडे से पति अथवा दाता पुरुष से प्राप्त किए गए शुक्राणुओं को एकत्रित करके प्रयोगशाला में अनुरूपी
परिस्थितियों में युग्मनज बनने के लिए प्रेरित किया जाता है। इस युग्मनज या प्रारंभिक
भ्रूण (8 ब्लास्टेमियर तक) को फैलोपी नलिकाओं में स्थानांतरित किया जाता है जिसे
युग्मनज अंतः डिंब वाहिनी (फैलोपी) स्थानांतरण अर्थात् जाॅइगोट इंट्रा पफैलोपियन
ट्रांसफर (जेड आई एफ टी) कहते हैं। और जो भू्रण 8 ब्लास्टोमियर से अध्कि का होता
है तो उसे परिवर्धन हेतु गर्भाशय में स्थानांतरित कर दिया जाता है। इसे इंट्रा यूटेराइन है तो उसे परिवर्धन हेतु गर्भाशय में स्थानांतरित कर दिया जाता है। इसे इंट्रा यूटेराइन
टंªासफर (आई यू टी) कहते हैं। जिन स्त्रिायों में गर्भधरण की समस्या रहती है, उनकी
सहायता के लिए जीवे निषेचन (इन-विवो फर्टीलाइजेशन-स्त्री के भीतर ही युग्मकों का
संलयन) से बनने वाले भ्रूणों को भी स्थानांतरण के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है।
ऐसे मामले में जहाँ स्त्रियाँ अंडाणु उत्पन्न नहीं कर सकतीं है लेकिन जो निषेचन और
भ्रूण के परिवर्धन के लिए उपयुक्त वातावरण प्रदान कर सकती हैं, उनके लिए एक अन्य
तरीका अपनाया जा सकता है। इसमें दाता से अंडाणु लेकर उन स्त्रियों की फैलोपी
नलिका में स्थानांतरित (जी आई एफ टी) कर दिया जाता है। प्रयोगशाला में भ्रूण बनाने के लिए अंतः कोशिकीय शुक्राणु निक्षेपण (आई सी एस आई) दूसरी विशिष्ट प्रक्रिया
है जिसमें शुक्राणु को सीधे ही अंडाणु में अंतःक्षेपित किया जाता है। बंध्यता के ऐसे
मामलों में जिनमें पुरुष साथी स्त्री को वीर्यसेचित कर सकने के योग्य नहीं है अथवा
जिसके स्खलित वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या बहुत ही कम है, ऐसे दोष का निवारण
कृत्रिम वीर्यसेचन (ए आई) तकनीक से किया जा सकता है। इस तकनीक में पति या
स्वस्थ दाता से शुक्र लेकर कृत्रिम रूप से या तो स्त्री की योनि में अथवा उसके गर्भाशय
में प्रविष्ट किया जाता है। इसे अंतः गर्भाशय वीर्यसेचन (आई यू आई) कहते हैं।
यद्यपि बहुत सारे विकल्प उपलब्ध् हैं, किन्तु इन सभी तकनीकों में विशेषीकृत
व्यावसायिक विशेषज्ञों द्वारा एवं व्रिफयाओं हेतु अति उच्च परिशु(ता पूर्ण संचालन
(हैंडलिंग) की आवश्यकता होती है और ये बहुत मँहगी भी होती हैं। इसलिए, पूरे देश
में फिलहाल ये सुविधएँ केवल कुछ शहरों में ही उपलब्ध् हैं। स्पष्ट है कि इनके लाभ
केवल कुछ सीमित लोग ही वहन कर सकते हैं। इन उपायों को अपनाने में भावनात्मक,
धर्मिक तथा सामाजिक घटक भी कापफी निर्धरक होते हैं। इन सभी प्रक्रियाओं का अंतिम
लक्ष्य संतान प्राप्ति है और भारतवर्ष में अनेक अनाथ और दीनहीन बच्चे हैंहै जिनकी यदि
देखभाल नहीं की जाए तो वे जीवित नहीं रहेंगे। हमारा देश का कानून शिशु को कानूनन
गोद लेने की इजाजत देता है और जो दंपत्ति बच्चे के इच्छुक हैं उनके लिए संतान प्राप्ति
का यह सर्वोत्तम उपाय है।
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