ग़जल
महाभारत के समर में, खो गए आदमी
दिशाहीन रास्तों पे, सो गया आदमी
ग़जल
जिन्दगी बस ज्वार-भाटा, बन के रह गई
गर्द- सफर में कांटे, बिछो गया आदमी
ग़जल
सूरज की तलाश में जब, पांव निकाल पड़े
अंधेरो की दास्ताँ, पिरो गया आदमी
ग़जल
उम्र भर जूझता रहा, आंधी-औ तूफान से
अपने कफ़न पर जिंदगी, बिछो गया आदमी
ग़जल
भीड़ से जो उम्र भर, चट्टान बन लड़ता रहा
ख़ुशी जब थी सामने, रो गया आदमी
ग़जल
-सुशिल एम. व्यास
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