दूसरो को शांति
दे, वह ‘संत’ है l
इस जगत में निर्दोष कभी
नहीं लूटा जाता, दोषित
ही लूटा जाता है l
मेहनत का फल ‘संसार’
है और समझ
का फल ‘मोक्ष’l
जो गया, उसके लिए न रोएं और जो
आया, उसका हर्ष न करेl जो गया, वह आने वाला है और
ओ आया,
वह जाने वाला ही है l
यदि अधिकार का दुरुप्रयोग
करेगे तो सत्ता चली जाएगी l
‘मेरी कीमत(कद्र) नहीं की l’
कितने ही लोग ऐसा कहते हैं न!
आपकी ‘कीमत’ थी ही कहा?
‘कीमत’ तो उनकी कही जाती है
जिन्हें राग-द्वेष न हो l
समझ के साथ धोका खाना,
इसके समानप्रगति इस
जगत में कोई भी नहीं है l
यह बहुत उचा सिद्धांत है l
मन को वश में करना यानी
तीन लोक के नाथ को
वश में कर लिया है l
पाप शरीर से नहीं
मन से होते है l
जब तक ‘स्वयं’ भगवान
नहीं होते तब तक भगवान
नहीं मिलते l
क्लेश करवाने वाला
कोन है ? अज्ञान!!!
टेड़े के साथ तेडा होना जगत
का स्वभाव है लेकिन टेड़े के
साथ सीधा होना ‘ज्ञानी’
का स्वभाव है l
‘मुझ से नहीं होता’ ऐसा न बोले,
इससे आत्मा पर आवरण आते है l
हम जो कुछ भी बोलते है उसका
आत्मा पर असर हो ही जाता है l
जहा अक्कड़ होने की
स्थिति हो वहा नम्र
रहे, वह ‘खानदानी’ है l
हमें हमेशाइस बात का ध्यान रखना
है कि यदि किसी के सामने एक
अंगुली उठाते है तो बाकी की तीन
अंगुलिया हमारी तरफ उठती है l
जो व्यक्ति दुसरो के प्रति
‘सिन्सियर’ नहीं रहता,
वह अपने प्रति भी
‘सिन्सियर’ नहीं रहता l
लोग समझते हैं कि
झूठ बोलूगा तभी मालबिकेगा
लेकिन नहीं, सच बोलेगे
तब भी माल बिकेगा l
जगत अपने स्वभाव में हैl
सतयुग व कलयुग लोगो
के भाव से हैं l
जब हमारा ही मन हमारे वश
में नहीं रहता तो दूसरो का मन
हमारे वश में कैसे रहेगा ? ऐसी
तो आशा भी नहीं करनी चाहिय l
सबसे सरल यदि कुछ है तो
वह है, ‘ज्ञान’ और सबसे
कठिन है, ‘अज्ञान’ l
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