हरी पतग और लाल दुपट्टा : Long Hindi Story



माँ पर हिंदी कहानी
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दीदीजी, मुझे पतंग उड़ाना नहीं आता। आप प्लीज इस पतंग को उड़ाकर मेरी मां तक पहुचा देना। सब कहते है कि मरने के बाद लोग ऊँपर दूर आसमान में चले जाते है। मां भी तो वहीं होगी ना। आप बस उन तक ये पतंग पहुचा देना।

पतगों का मोसम आ चुका था। आकाश में लाल, नीली, पीली, हरी, नारगी ढेर सारे रगों की पतगेंउड़ते हुए ऐसे लग रही थी,मानो इन्द्रधनुष के सारे रग आकर आकाश मेंबिखर गए हो। जिनकी सोहबत में सारा आकाश खिलखिलाता सा नजर आ रहा था।रेवड़ी, तिलपट्टी, मूगफली और तिल के लड्डूएक थाली में लेकर मैंभी पहुच गई छत परपड़ोस के बच्चों के सग पतग उड़ाने। तभी छतसे नीचे सड़क किनारे कई दिनोंबाद एक चबूतरे पर बैठी रेवती नजर आई। बड़ी उम्मीदभरी नजरोंसे कभी वो आकाश में उड़ती पतगो को देखती तो कभी मायूस होकर शून्य मेंताकने लगती।
रेवती घर से थोड़ी दूर बने आधे कच्चे आधे पक्के घर में रहती थी। कुछ महीनों पहले तक तो, जब उसकी मांझोड़ू-बत¸न करनेआती, अक्सर उसका घर में आना-जाना होताथा। पर पिछले महीने ही उसकी मांचल बसी।आसपास के लोग बताते हैंकि एक रात उसकेशराबी पति ने उसे पैसों के लिए इतनी बेरहमीसे पीटा कि वह बेचारी सुबह आखें तक नाखोल सकी, और अपनी 12-13 साल कीबच्ची को सदा के लिए अकेला छोड़कर चलीगई।
रेवती की मा रेवती से बहुत प्यार करतीथी। अक्सर उसकी ही बातें करती रहती थी।रेवती उसकी इकलोती सतान थी। मैंजब भीरेवती की पढ़ाई के बारे में पूछती तो वह बड़ेउत्साह से कहती, “दीदीजी, रेवती को तो पढ़ालिखाकर बहुत बड़ी अफसरानी बनाना है।उसे ना माजने पड़ेगे यूंघर-घर जाकर बत¸न।समझदार बड़े अफसर से ही उसका ब्याह भीरचाऊँगी। बेटी के जीवन में किसी बात कीकमी ना होने दूगी। चाहे उसके लिए दस घरऔर क्योंना पकड़ने पड़े।
रेवती की मां का उत्साह देखकर बड़ाअच्छा लगता। एक अनपढे गरीब औरत केदिल में अपनी बच्ची के लिए ऐसे सपने पलतेदेखकर दिल खुशी से भर जाता। साथ हीऊँची-ऊँची इमारतों में रह रहे उन तथा कथित आधुनिक पढ़े-लिखे लोगों पर गुस्सा भी आताजो आज भी बेटी के जन्म को अभिशाप मानते हैंऔर कई तो जन्म से पहले ही उसेमृत्यु की गोद में सुला आते है।रेवती पढेने में बहुत होशियार थी। मैं भी अक्सर रेवती को गएणत और अन्य विषयोंकेप्रशन हल करने में मदद करने लगी। दिल सेयही चाहती थी कि रेवती की मां की आखोकी चमक कभी फीकी ना पड़े। उसके अपनीबेटी को लेकर देखे गए सारे सपने सच हो। पर नियति को जाने क्या मजूर था जो वोचमक भरी आखेंही सदा के लिए बद हो गईऔर उन आखोंके साथ ही सो गए वे सारेसपने भी जो अक्सर वह रेवती के लिए देखाकरती थी।
रेवती की मां के गुजरने के बाद उसकेशराबी पिता ने उसकी स्कूल छुड़वा दी औरउसे भी घर-घर जाकर बत¸न माजने के काममें लगा दिया, ताकि वह अपनी शराब के लिएऔर पैसे जुटा सके। यह सब जानकर मुझेबड़ा दुख हुआ। एक दिन मैने रेवती से उसकीसारी कॉपी-किताबेंअपने घर मगवा ली औरउसे कहा कि वह काम के बीच में एक घटायहांपढेने आ जाया करे और यह बात किसी को ना बताए। इससे उसके पिता को शक भीनहींहोगा और वह यही समझेगा कि यहां भी काम करने ही आती है।
कुछ दिन तो यह सब चलता रहा पर एकदिन अचानक उसके पिता को जाने कै§से खेबरलग गई और वह, जब रेवती पढे रही थी तबआया और उसका हाथ पकड़कर उसे पीटतेहुए ले जाने लगा। मैने रोकने की कोशिश कीतो उसने सारी कॉपी किताबेंउठाकर एक जगहरखी और मुझे घूरते हुए उनमें माचिस कीतीली से आग लगा दी, मानोंकह रहा हो,“अब ना करना ऐसी जुर¸
उस घटना के कई दिन बाद तक रेवतीनजर नहींआई। आज अचानक जब रेवती को चबूतरे पर बैठे देखा तो मन हुआ उससेबात करने का, उसका हालचाल पूछने का।और यही सब सोचकर मैने कुछ तिल केलड्डू और रेवड़िेयांएक अखबार के पन्नाे मेंलपेटी और नीचे आकर रेवती को अपने पासबुलाया। रेवती ने पहले तो डरते-डरते चारोओर देखा और एफर दोड़कर मेरे पास आ गई।मैने पूछा, “कैसी हो रेवती? कुछ खाया यानही?” रेवती कुछ नहींबोली, वह तो बार-बारबस आसमान में उड़ रही पतगोंको देखे जारही थी।
तुझे पतग चाहिए?” मैने रेवती से पूछा तोउसने सहमति में सिर हिला दिया। मैने उसेअखबार में बधे लड्डू और रेवड़िेयांपकड़ाईऔर कहा, “तू पहले यह खा ले। तब तक मैलेकर आती हूंपतग।यह सुनकर वह उसीचबूतरे पर जाकर बैठ गई और मेरे वापसआने का इतजार करने लगी। मैंछत पर रखीपतगोंमें से एक हरी पतग और माझो लेकरनीचे आई और रेवती को दे दिया। मैने देखारेवती ने अभी तक कुछ भी नहींखाया था।मुझे लगा बाद में खा लेगी और यही सोचकरमैंभीतर आ गई।
करीब एक दो घटे बाद दरवाजे परदस्तक हुई। मैने देखा रेवती हाथ में वही हरीपतग लिए खड़ी थी। मैने कहा, “ये तेरे लिए ही है। तू इसे वापस क्योंलेकर आई है?” तबरेवती बोली, “दीदीजी, मुझे पतग उड़ाना नही आता। आप प्लीज इस पतग को उड़ाकर मेरीमांतक पहुचा देना। सब कहते हैंकि मरने केबाद लोग ऊँपर दूर आसमान में चले जाते है।मांभी तो वहींहोगी ना। आप बस उन तक येपतग पहुचा देना।और यह कहकर पतग मेरेहाथ में थमा वह दोड़कर वापस चली गई। मैहैरत से उसे कुछ देर देखती रही फिर अचानकपतग पर मेरी नजर पड़ी जिस पर बहुत कुछलिखा था।
अरे! यह तो रेवती की लिखावट है”,यह देखकर मैंउन शब्दोंको पढेने लगी।
मा, तू मुझे छोड़कर क्योंचली गई? मा,तेरी बहुत याद आती है। सुबह जब बापू चायबनाने के लिए मार-मार कर उठाता है, तबचाय के हर एक उबाल के बैठने के साथ तूबहुत याद आती है। जब सवेरे-सवेरे आसपासके बच्चे तैयार होकर स्कूल जाने लगते है, तोउनके बढेते हर कदम के साथ तू बहुत यादआती है। मा, मैंजो कुछ भी बनाती हू, बापूसब खा जाता है। मुझे हमेशा सूखी-ठडी रोटीखानी पड़ती है। हर कोर के गले में चुभने केसाथ तू बहुत याद आती है। रात को जब बापू शराब पीकर लोटता है तो मैंगुसलखाने में छिपजाती हू। तब अधेरे में नल से टपकती हर बूदके साथ तू बहुत याद आती है। मा, तेरे बिनानीद नहींआती। हर बदलती करवट के साथतू बहुत याद आती है। मा, तू वापस आ जाना या फिर मुझे अपने पास बुला ले। तेरे बिनाएक दिन भी काटना बहुत मुश्किल है। तू बसवापस आ जा मा।
और यह सब पढेते-पढेते मेरी आखेंभीगर्गइ। विश्वास नहींहो रहा था कि यह 12-13साल की उसी मासूम के शब्द हैंजो कुछ देरपहले मेरे सामने खड़ी थी। मैंदोड़कर बाहर गईकि शायद रेवती कहींनजर आ जाए। पर वहनहींदिखी। तभी मैंछत पर गई और ना जानेकिस विश्वास में वह पतग उड़ाने लगी। देखतेही देखते पतग दूर आसमान में पहुच गई औरएक हरी बिदी की तरह चमकने लगी। डोर काआएखरी सिरा जो मेरे हाथ में था वह मैने छोड़दिया और उदास मन से नीचे आ गई।
अगली सुबह जब छत पर कपड़े लेने गईतो देखा रेवती के घर के पास भीड़ जमा थी।राह चलते किसी आदमी से पूछा तो पता चलारेवती का बापू बाहर मरा पड़ा है। एक के बादएक यह सब घटनाएंमुझे बेचैन कर रही थी।मैंजल्दी-जल्दी कपड़े उठाने लगी तभी देखावहांसूख रहे मेरे लाल दुपट्टे में कोई धागाअटक रहा था। ध्यान से देखा तो वह उसीपतग का माझो था जो कल शाम मैने उड़ाई थीऔर वह पतग अभी भी आसमान में हरी बिदीसी चमक रही थी।
ऐसा लगा मानो यह ईश्वर का कोई सकेतथा कि मुझे अब रेवती के लिए बहुत कुछकरना चाहिए। और यही सोचते-सोचते वोलाल दुपट्टा मैने गले में डाला और रेवती केघर की ओर चल पड़ी।


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