मनुष्य
हमारा वंशज नहीं है
एक पेड़ पर कुछ बन्दर
रहते थे। दिनभर
भोजन की तलाश में इधर- उधर घूमते रहते थे मगर संध्या के समय सभी अपने ठिकाने पर
लोट आते। फिर पेड़ पर बेठ कर वो दिनभर के अनुभवों पर चर्चा करते थे। उनमे से एक
बन्दर को नई-नई पुस्तक पढ़ने का शोकिन था वह नई पुस्तक के बारे में जानकारिया
जुटाता व सांध्य सभा में अपने को उसके विषय में बताता।
एक दिन उसमे साथी बंदरो से कहा ‘मनुष्य हम बंदरो को बदनाम करने का प्रयास कर
रहा है। चार्ल्स डार्विन नाम के एक आदमी ने प्रकृति वरण का सिद्धांत नामक पुस्तक
लिखकर यह बताने की कोशिश की है कि मनुष्य बंदरो का वंशज है। कैसी बेसिर पैर कि बात
लिखी है उसने। मुझे तो बंदर व मनुष्य में एक भी समानता नहीं दिखाई देती। तुमने कभी
देखा है कि कोई बंदर खाने-पीने के सामान को गोदाम में भरकर रखता हो जबकि अन्य
बन्दर भूखे मर रहे हो। किसी बंदर ने खाने-पीने की वस्तु में मिलावट की है? क्या
कोई बंदर चाकू,पिस्तौल या अन्य साधन से दुसरे बन्दर की हत्या करता है? क्या तुमने
बंदरो को जाति, धर्म या भाषा के नाम पर झगड़ते देखा है? क्या बन्दर अपने ही
पर्यावरण को इस तरह नष्ट कर रहा है कि सम्पूर्ण प्राणी जाति ही संकट में पड़ जाए।
जबकि मनुष्य प्रतिदिन ऐसे काम कर रहा है फिर मनुष्य हम बंदरो को वंशज कैसे हो सकता
है?’ ‘ठीक कहा तुमने मनुष्य हमारा वंशज कैसे हो सकता है?
मनुष्य हमारा वंश नहीं ठीक नहीं है, बिलकुल नहीं है।‘ अन्य सभी बंदर एक साथ बोले और सभी में सनाटा छा गया।
By- विष्णु
प्रसाद चतुर्वेदी
मैं विष्णु प्रसाद जी का आभार व्यक्त करता हू कि इतनी अच्छी सिख एक छोटी
सी कहानी के माध्यम से हमें दी।
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आपके योगदान के लिए धन्यवाद! ConversionConversion EmoticonEmoticon