"AIDS" एड्स कैसे होता है और कैसे बचे?



एड्स कैसे होता है और कैसे बचे : AIDS
AIDS - AIDS - Acquired Immuno Deficiency Syndrome

एड्स यानि कि उपार्जित प्रतिरक्षा नाशक रोग समूह, जिसका अर्थ है कि एड्स मनुष्य जाति मेंस्वाभाविक रूप से शुरू नहीं हुआ बल्कि मनुष्य जाति के अपने ही कुछ कर्मों के कारण उपार्जित हुआ।यह एक संक्रामक रोग है जो कि एच.आई.वी. (ह्यूमन इम्यूनो डेफिशियेन्सी वायरस) नामक विषाणु केसंक्रमण के फलस्वरूप होता है। जब यह विषाणु शरीर में प्रवेश कर जाता है तो रक्त में पहुंच कर रक्तके सफेद कणों में मिलकर उसके DNA में पहुंच जाता है जहां वह विभाजित होता है और रक्त केसफेद कणों पर आक्रमण करता है। धीरे-धीरे यह सफेद कणों की संख्या बहुत कम कर देता है। उसीकमी या समाप्ति के साथ शरीर की रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता को समाप्त करता है। यह विषाणुशरीर में प्रवेश करने के बाद समाप्त नहीं होता। UN AIDS के अनुसार वर्ष 2002 के अंत तक HIV के साथ जी रहे लोगों की संख्या 4.2 करोड़ तक पहुंच चुकी है और हर गुजरता दिन इस संख्यामें एच.आई.वी. से संक्रमित 15,000 और नये लोग जोड़ जाता है। सबसे ज्यादा जोखिम में युवा पीढ़ीहै, क्योंकि आधे से ज्यादा एचआईवी से संक्रमित लोग 15 से 24 साल के बीच की उम्र के हैं।आज दुनिया का कोई भी देश एच.आई.वी. की मार से नहीं बचा है। भारत में HIV के साथजी रहे लोगों की संख्या 40 लाख तक पहुँच गई है और अब तो हालत यह है कि हर गुजरते मिनिटके साथ एक भारतीय एच.आई.वी. से संक्रमित हो जाता है। इसकी चिकित्सा व बचाव का टीका अभीतक विकसित नहीं हो पाया है। हालाँकि इस दिशा में विश्व भर में अनुसंधान चल रहे हैं। यदि इस रोगपर काबू नहीं पाया गया तो समस्त मानव जाति नष्ट हो सकती है अतः इस रोग को समझना, समझाना,बचना व दूसरों को बचाना ही महत्त्वपूर्ण परिचर्या है। एच.आई.वी. के संक्रमण से मनुष्य के शरीर की रोगोंसे लड़ने की क्षमता खत्म हो जाती है। परिणामस्वरूप AIDS रोगी को कई तरह के अवसरवादी संक्रमणहो जाते हैं जिनसे तरह-तरह की बीमारियाँ हो जाती हैं। रोगी का शरीर इन बीमारियों से लड़ नहीं पाता है और अंत में ये संक्रमण मौत का कारण बन जाते है।एच.आई.वी. संक्रमण उन चोरों के समान है जो कि शरीर की रक्षा करने वाले प्रतिरक्षा तत्त्वों पर अपनाआक्रमण करते हैं और उन प्रतिरक्षा तत्त्वों रूपी पुलिस थानों को ही अपना अड्डा बना लेते हैं। खून केपरीक्षण से HIV संक्रमण का पता लगाया जा सकता है। विषाणुओं से संक्रमित व्यक्ति को एचआई.वी. पोजि़टिव कहते हैं। एच.आई.वी. पोजि़टिव व्यक्ति कई वर्षों (6-10 वर्ष) तक सामान्य प्रतीतहो सकता है और सामान्य जीवन व्यतीत कर सकता है लेकिन इस अवधि में वह दूसरों को यह बीमारी फैलाने में सक्षम होता है। अतः ऐसे व्यक्ति को कुछ सावधानियाँ बरतनी चाहिये ताकि वह अपनेजीवन-साथी व बच्चों में यह रोग न फैला सके तथा स्वयं को भी अवसरवादी संक्रमणों से बचा सके।एच.आई.वी. पोजि़टिव का मतलब एड्स नहीं है, लेकिन इसके विषाणु द्वारा संक्रमण शरीर में पहुँच चुकाहै और 6 से 10 साल के समय में एड्स विकसित होने लगती है यानि कि व्यक्ति में जब मिश्रित बीमारियों के लक्षण नजर आने लगे तब इस अवस्था को AIDS कहते हैं।एड्स के रोगी में वजन घटना, बुखार, दस्त लगना, खाँसी, चर्म रोग तथा अनेक प्रकार की बीमारियाँ जैसे टी.बी., निमोनिया, कैन्सर इत्यादि देखे जा सकते हैं।
एच.आई.वी. संक्रमण निम्न कारणों से फैलता है:

असुरक्षित यौन संबंध से।
बिना जाँचा हुआ संक्रमित रक्त रोगी को चढ़ाने से।
संक्रमित सिरिंज एवं सुई के उपयोग से।
संक्रमित व्यक्ति के अंग प्रत्यारोपण से।
एच.आई.वी. संक्रमित माँ के होने वाले बच्चे व स्तनपान से।
उपरोक्त एच.आई.वी. फैलाने वाले बिन्दुओं के साथ-साथ यह भी जान लेना आवश्यक है कि एचआई.वी. किन से नहीं फैलता है ताकि एड्स रोगी अपने आपको एकदम अलग-थलग महसूस कर हीन भावना का शिकार न हो।

एच.आई.वी. या AIDS Virus निम्न कारणों से नहीं फैलता हैं:

एच.आई.वी. संक्रमित व्यक्ति के साथ दैनिक प्रयोग की वस्तुओं जैसे टेलीफोन, किताबें, पेन आदि का सहभागी प्रयोग करने से।
शारीरिक स्पर्श जैसे हाथ मिलाना, छूना, साथ उठना-बैठना व आस-पास खड़े होने से।
सुरक्षित यौन सम्बन्ध
एक ही आॅफिस, कारखानों में साथ-साथ काम करने से, उपकरणों को मिलकर प्रयोग करने से।
साथ-साथ खाने-पीने तथा प्लेट, गिलास या अन्य बर्तनों का मिलकर प्रयोग करने से।
सार्वजनिक स्नानघर या शौचालय का प्रयोग करने से।
हवा में खाँसने, छींकने से।
कीट पतंगों, मच्छर, जूं, खटमल के काटने व मक्खी आदि से।


एड्स(AIDS) से बचाव:
इस रोग का कोई उपचार व टीका उपलब्ध नहीं है, अतः रोग के कारणों से बचकर ही शत-प्रतिशत बचाव किया जा सकता है:
जीवन साथी के अलावा किसी अन्य के साथ यौन सम्बन्ध स्थापित नहीं करना चाहिये। यौन रोगिय के साथ यौन सम्पर्क नहीं करना चाहिये।
यौन सम्पर्क के समय नियमित निरोध (कन्डोम) का प्रयोग करना चाहिये।
मादक औषधियों के आदी व्यक्तियों द्वारा सुई व सिरिंज का साझा प्रयोग नहीं करना चाहिये।
कम से कम बीस मिनट पानी में उबाली सुई व डिस्पोज़ेबल सिरिंज (नष्ट करने योग्य) ही काम में लेनी चाहिये।
एड्स से पीडि़त महिलाओं को गर्भ धारण नहीं करना चाहिये या फिर डाॅक्टर से सलाह लेनी चाहिय आजकल ऐसी दवाएँ उपलब्ध हैं जिससे एच.आई.वी संक्रमित महिला के गर्भ में पल रहे शिशु में एचआई.वी. की सम्भावना काफी कम की जा सकती है।
रक्त की आवश्यकता होने पर एच.आई.वी. की जाँच किया रक्त ही ग्रहण करना चाहिये।
किसी का इस्तेमाल किया हुआ ब्लेड काम में नहीं लेना चाहिए।
शरीर में गोदना गोदने एवं नाक व कान छेदने के लिये काम आने वाले उपकरणों को भी कीटाण् रहित करके ही प्रयोग में लेना चाहिये।
संदेह होने पर एच.आई.वी. जाँच करवानी चाहिये। सरकारी अस्पतालों में सिर्फ 10 रु. का शुल्क
लेकर इसकी जाँच की जाती है।
एड्स से सम्बन्धित जानकारी न केवल ग्रसित या उसके परिवार के सदस्यों अपितु सभी को जनसंचार माध्यमों द्वारा देनी चाहिये ताकि इस रोग से बचा जा सके।यदि व्यक्ति एच.आई.वी. संक्रमित है या उसे AIDS हो गई है तो उसे मुख्य रूप से दो बातों काध्यान रखना चाहिये। प्रथम बात तो यह कि वो किसी और व्यक्ति को संक्रमित न करे तथा वो स्वयकिसी अन्य बीमारी से संक्रमित न हो। एड्स का अन्त दर्दनाक मौत ही है क्योंकि इस रोग की न तो कोईदवा है, न कोई टीका और न ही इसका कोई इलाज। एड्स से बचाव ही उपचार है।हमारे देश में इस रोग के फैलने की गति को कम करने, इस रोग से होने वाले संक्रमण व मृत्यु दर को कम करने, इस संक्रमण से सामाजिक व आर्थिक स्तर पर प्रभाव कम करने तथा इस रोग के प्रतिलोगों के व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिये, 1987 से राष्ट्रीय AIDS नियन्त्रण संस्थान कार्यरत है।


दोस्तों अगली पोस्ट में आपको मैं “सिफिलिश” रोग के बारे में जानकारी दूंगा जरुर पढ़े Syphilis रोग कैसे होता है और इसे कैसे मिठाये जरुर पढ़े

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