सिफिलिस (Syphilis)
सिफिलिस यौन सम्बन्धी रोग है जो कि एक विशेष प्रकार के
जीवाणु (बेक्टिरिया) ट्रेपोनिमा पैलीडम (Treponema Pallidum) से होता है। यह
रोग सिफिलिस रोग से ग्रसित व्यक्ति से यौन सम्पर्क स्थापित करने से फैलता
है। यह एक लम्बी अवधि का रोग है जो कि प्रथम दो वर्ष में संक्रमणशील होता है। ट्रेपोनिमा पैलीडम का विकास काल 14-28 दिन का होता है।
यह रोग निम्न प्रकार से होता है।
1. उपार्जित (Acquired) - सिफिलिस की निम्न
अवस्थाएं होती हैः
अ. प्राथमिक अवस्थाः इसमें संक्रमण वाले स्थान पर व्रण या
धाव जिन्हें ”शेंकर्स“ कहते हैं उत्पन्न
हो जाते हैं।
पुरूषों में यह अधिकतर जननेन्द्रिय के अंतिम भाग की त्वचा व स्त्रियों में योनि या
गर्भाशयकी ग्रीवा पर संक्रमण होता है और फिर यह एक दर्दनाक घाव/व्रण में बदल जाता
है। इस अवस्थामें यदि ध्यान रखा जाए तो ये व्रण बिना किसी विशेष उपचार से ठीक हो
जाते हैं।
ब. द्वितीय अवस्थाः यह अवस्था व्रण विकसित होने के 6-8 दिन बाद होती
है। इसमें व्यक्ति के सिर में दर्द तथा हथेली, पैर के तलूए व बाजुओं में घाव होने लगते हैं। ये घाव सफेद, सिकुड़े तथालाल किनारी वाले होते
हैं।
स. अंतिम अवस्थाः इस अवस्था को विकसित होने में करीब दस
वर्ष की अवधि लगती है। इसमें त्वचा, हड्डियाँ व अन्य
अंग प्रभावित होते हैं। इसमें घाव दानेदार हो जाते हैं। अंतिम चरण तक पहुँचने
तककाफी समय लगता है परन्तु इस वक्त तक नस एवं हदय भी संक्रमित होने लगते हैं तथा
अंत मेंव्यक्ति की मृत्यु हो जाती है।
2. जन्मजात (Congenital)
इस प्रकार के सिफिलिस रोगी में प्रारम्भिक अवस्था उत्पन्न
नहीं होती है। यह बीमारी, संक्रमित माताके गर्भाशय से शिशु में प्रवेश कर
जाती है। यह रोग अत्यधिक उग्र प्रकृति का होता है तथा कई बारशिशु की गर्भाशय में
ही मृत्यु हो जाती है। यदि शिशु बच जाता है तो कुछ ही दिनों में उसके शरीर मेंव्रण
उत्पन्न होने लगते हैं तथा उसकी हड्डियाँ, गुर्दा, यकृत सभी
प्रभावित होने लगते हैं। त्वचा, मुँह, दाँत,हड्डियों की
संधियों पर सुखे घाव होने लगते है तथा नसे सुन्न होने लगती हैं और अंत में लकवा हो
जाताहै।
रोग का निदानः
इस रोग का निदान प्रारम्भिक अवस्था यानि कि दो सप्ताह में
आसानी से किया जा सकता है। इसरोग का जीवाणु ट्रेपोनिमा पैलीडम, पेनिसिलीन के
प्रति काफी संवेदनशील होते हैं तथा एन्टीबायोटिक्सकी उपस्थिती में मर जाते हैं। इस
रोग से बचाव के उपाय हैं - वेश्यावृति पर पूर्ण रूप से रोक लगाना,समय-समय पर
चिकित्सीय जाँच करवाना, रोगी व्यक्ति के साथ यौन सम्पर्क स्थापित न
करना,विद्यालयों व महाविद्यालयों में यौन शिक्षा देना आदि।
आपके योगदान के लिए धन्यवाद! ConversionConversion EmoticonEmoticon