टमाटर (Tomato)
सामान्य विवरण :-
टमाटर अत्यन्त ही लोकपिय तथा पोषक तत्वों से युक्त फलदार सब्जी है। इसकी उत्त्पति
मैक्सिको और पेरू में हुई मानी जाती है। सम्पूर्ण भारत में इसे व्यापारिक स्तर पर उगाया
जाता है। भारत में कुल क्षेत्रफल 83,000 हेक्टर है जिसमें 790,000 टन उत्पादन होता है फल पोषक तत्वों
में भरपूर होता है। इसमें आयरन, फॉस्फोरस, विटामिन 'ए' तथा 'सी' भरपूर मात्रा में पाया जाता है। फल से केचप, सॉस, चटनी, सूप, रस, पेस्ट आदि परिरक्षीत पदार्थ
तैयार किए जाते है। फलों को काट कर सुखाया भी जाता है। पके हुए फलों में संग्रहण क्षमता
अत्यन्त ही कम होती है। अत्यन्त ही गुणकारी कच्चा और पका कर उपयोग किया जाता है। अनेक
प्राकृतिक अम्लों से पूर्ण होने के कारण पाचन तंत्र के लिए अत्यन्त ही लाभदायक है।
सुस्त यकृत को उत्तेजित कर पाचक रसों के स्रवाण में सहायक होता है। रक्त शोधन,
अस्थमा और ब्रोन्काइटिस
और पित्त्त विकार में उपयोगी। मृदु रेचक, आंतों के लिए प्रति जीवाणु, शरीर के सामान्य शुद्धिकरण के लिए
गुर्दे के कार्यो में सहायक। टमाटर की फसल अवधि 60 से 120 दिन होती है। पौधे रोपणके 2½
से 3 माह पश्चात् फल तैयार हो
जाते है। मुख्य फलन दिसम्बर-जनवरी में प्राप्त होती है। वर्षा ॠतु तथा ग्रीष्म ॠतु
में भी फलन ली जा सकती है। प्रति हेक्टर 250 से 300 क्विंटल फल प्राप्त होते हैं। उपज
किस्म तथा ॠतु के अनुसार भिन्न-भिन्न होती है।
आवश्यकताए :
जलवायु –
मध्यम ठण्डा वातावरण उपयुक्त होता है। तापकृम कम हो जाने से अथवा पाले से पौधे
मर जाते हैं। उचित वृद्धि तथा फलन के लिए 21 से 23º तापकृम उचित माना जाता है। तीव्र
गर्मी से भी पौधे झुलस जाते हैं तथा फल भी झड़ जाते हैं।
भूमि –
जल निकास वाली भूमि चाहे वह किसी भी प्रकार की हो, उसमें टमाटर का उत्पादन किया जा सकता
है। चुनाव की दृष्टी से बलुई- दुमट भूमि सबसे अच्छी मानी गई है। भूमि का पीएच मान 6 से 7 होना उचित है।
सिंचाई –
टमाटर में अधिक तथा कम सिंचाई दोनों ही हानिकारक है। शरद ॠतु में 10 से 12 दिन में अन्तर में सिंचाई
की जाती है। गर्मी में 4-5 दिन के अन्तर से भूमि के अनुसार सिंचाई की जा सकती है। टमाटर
का पौधा मुलायम तथा मांसल होता है। इसलिए पानी में पौधे डूबने से सड़ने लगते हैं। अत:
सिंचाई का पानी तने से दूर रहे और रिसकर जड़ों को प्राप्त हो तो उÙमा सिंचाई व्यवस्था मानी
जायेगी। सिंचाई प्रात:काल करनी चाहिए।
खाद एवं उर्वरक
–
टमाटर की फसल एक हेक्टर भूमि से 150 किलो नाइट्रोजन, 22 किलो फास्फोरस तथा 150 किलो पोटाश ग्रहण करती है। इसकी पूर्ति के लिए निम्न
मात्रा में खाद तथा उर्वरक देना चाहिए :
गोबर की खाद
या कम्पोस्ट –
200 क्विंटल प्रति हेक्टर
नाइट्रोजन
–
100 किलो प्रति हेक्टर(किसी भी उर्वरक के रूप में)
फास्फोरस –
50 किलो प्रति हेक्टर
पोटाश –
50 किलो प्रति हेक्टर
गोबर की खाद खेत की तैयारी के साथ, फास्फोरस तथा पोटाश और पौध रोपण से पहले तथा
नाइट्रोजन तीन भागों में बांटकर पौधे लगने के दो सप्ताह बाद, एक माह बाद तथा दो माह बाद
देना चाहिए।उर्वरक पौधे के चारों ओर तने से दूर फैलाकर देना चाहिए। उर्वरक देने के
पश्चात् हल्की सिंचाई करनी चाहिए।
उद्यानिक -क्रियाए
-
बीज विवरण
–
बीज की मात्रा प्रति हेक्टर - 500 ग्रामप्रति 100 ग्रा. बीज की संख्या -
30,000
अंकुरण –
85-90 प्रतिशत
अंकुरण क्षमता
का समय –
4 वर्ष
बीजोपचार –
केप्टान 50% 4gram/kg बीज
पौध तैयार
करना –
वर्षा ॠतु में 10 सेमी. ऊँची क्यारी तैयार कर उसमें बीज बोना चाहिए। बीज
कतारों में बोए। आद्रर्गलन की संभावना में क्यारी को बोर्डो मिश्रण से उपचारित कर लें।
धूप से बचाव केलिए बीज बोने के बाद घास या चटाई से ढंक दें।
पौध रोपण –
समय-प्रथम फसल - जुलाई-अगस्त
मुख्य फसल
–
सितम्बर-अक्टूबर
अंतिम- नवम्बर-दिसम्बर
क्यारियों में जब पौधे 4 से 5 सप्ताह के हो जाए या 7 से 10 सेती के हो जाए खेत
में रोपित करनाचाहिए। पौधे रोपण के पश्चात् तुरन्त हल्की सिंचाई करनी चाहिए। एक स्थान
पर एक ही पौधा लगाए।खेत की तैयारी का विवरण, मिर्च के अन्तर्गत देखें।
अन्य
-क्रियाए –
वर्षा ॠतु की फसल को बा¡स या लकड़ी के सहारे चढ़ा देना चाहिए। इस -क्रियाको स्टेकिंग
कहते है। इसमें फल तथा पौधे सड़ते नहीं हैं। फलोंआकार बढ़ जाता है, किन्तुफलों की संख्या घट
जाती है। शरद ॠतु तथा ग्रीष्म में ऐसा करना आवश्यक नहीं है।समय-समय पर नींदा का नियंत्रण
तथा गुडाइ टमाटर के फलों का फटना भी कभी-कभी समस्या हो जाती है। फलों का फटना कम करने
के लिये 0.3 प्रतिशत बोरेक्स
के साथ छिड़काव अथवा 0.3 प्रतिशत कैलशीयम सल्फेट तथा मैग्नीशियम सल्फेट के घोल का छिड़कावकरना
चाहिए। मैग्नीशियम सल्फेट के साथ इसकी आधी मात्रा में चूना भी मिला देना चाहिए। कभी-
कभीटमाटर के उत्पादन के निमेटोड का आकृमण हो जाता है और पौधे सूखने लगते हैं। अनुभव
से देखा गयाहै कि गेंदा के पौधों की जड़े रस निकालती है जो निमेटोड के लिये हानिकारक
होता है। अत:सिंचाई नालियों के समीप गेंदा के पौधे लगा देने से उनकी जड़ों से निकला
हुआ रस या स्रवा सिंचाई के
पानी के साथ मिलकर पौधों को प्राप्त होता है जिससे निमेटोड टमाटर के पौधों की जड़ों
को हानि नहीं पहुचा पाते है, निमेटोड की क्रियाशीलता समाप्त हो जाती है।
फलों की तुड़ाई
–
जब टमाटर का रंग परिवर्तन होने लगे अर्थात् हरा से लाल या पीलापन दिखाई दे तो फलों
को तोड़ लेना चाहिए।
आपके योगदान के लिए धन्यवाद! ConversionConversion EmoticonEmoticon