1. अपना रख, पराया चख
|
अपना बचाकर दूसरों का माल हड़प करना
|
|||
2. अपनी करनी पार उतरनी
|
स्वयं का परिश्रम ही काम आता है।
|
|||
3. अकेला चना भाड़ नहीं
|
अकेला व्यक्ति शक्ति हीन होता है।
|
|||
फोड़ सकता
|
||||
4. अधजल गगरी छलकत जाय
|
ओछा आदमी अधिक इतराता है।
|
|||
5. अंधों में काना राजा
|
मूर्खों में कम ज्ञान वाला भी आदर पाता है।
|
|||
6. अंधे के हाथ बटेर लगना
|
अयोग्य व्यक्ति को बिना परिश्रम
|
|||
संयोग से अच्छी वस्तु मिलना।
|
||||
7. अंधा पीसे कुत्ता खाय
|
मूर्खौं की मेहनत का लाभ अन्य
|
|||
उठाते हैं। असावधानी से अयोग्य को लाभ।
|
||||
8. अब पछताये होत क्या, जब
|
अवसर निकल जाने पर पछताने
|
|||
चिडि़या चुग गई खेत
|
से कोई लाभ नहीं।
|
|||
9. अन्धे के आगे रोवै अपने
|
निर्दय व्यक्ति या अयोग्य व्यक्ति
|
|||
नैना खावैं
|
से सहानुभूति की अपेक्षा करना व्यर्थ है।
|
|||
10. अपनी गली में कुत्ता भी
शेर
|
अपने क्षेत्र में कमजोर भी बलवान
|
|||
होता है
|
बन जाता है।
|
|||
11. अन्धेर नगरी चैपट
राजा
|
प्रशासन की अयोग्यता से सर्वत्र अराजकता आ
जाना।
|
|||
12. अन्धा क्या चाहे दो
आँखें
|
बिना प्रयास वांछित वस्तु का मिल जाना।
|
|||
13. अक्ल बड़ी या भैंस
|
शारीरिक बल से बुद्धिबल श्रेष्ठ होता है।
|
|||
14. अपना हाथ जगन्नाथ
|
अपना काम अपने ही हाथों ठीक रहता है।
|
|||
15. अपनी-अपनी
डपली
|
तालमेल का अभाव/सबका
|
|||
अपना-अपना राग
|
अलग-अलग मत होना/एकमत का अभाव
|
|||
16. अंधा बाँटे रेवड़ी
फिर-फिर
|
स्वार्थी व्यक्ति अधिकार पाकर
|
|||
अपनों को देय
|
अपने लोगों की सहायता करता है।
|
|||
17. अंत भला तो सब भला
|
कार्य का अन्तिम चरण ही महत्त्वपूर्ण होता
है।
|
|||
18. आ बैल मुझे मार
|
जानबूझ कर मुसीबत में फंसना
|
|||
19. आम के आम गुठली के दाम
|
हर प्रकार का लाभ/एक काम से दो लाभ
|
|||
20. आँख का अंधा नाम नयन
सुख
|
गुणों के विपरीत नाम होना।
|
|||
21. आगे कुआँ पीछे खाई
|
दोनों/सब ओर से विपत्ति में फँसना
|
|||
22. आप भला जग भला
|
अपने अच्छे व्यवहार से सब जगह आदर मिलता है।
|
|||
23. आये थे हरि भजन को
|
उद्देश्य से भटक जाना/श्रेष्ठ काम करने की
बजाय
|
|||
ओटन लगे कपास
|
तुच्छ कार्य करना/कार्य विशेष की उपेक्षा कर
किसी
|
|||
अन्य कार्य में लग जाना।
|
||||
24. आधा तीतर आधा बटेर
|
अनमेल मिश्रण/बेमेल चीजें
|
|||
जिनमें सामंजस्य का अभाव हो।
|
||||
25. इन तिलों में तेल नहीं
|
किसी लाभ की आशा न होना।
|
|||
27. आठ कनौजिए नौ
चूल्हे
|
फूट होना।
|
|||
28. उल्टा चोर कोतवाल को
डाँटे
|
अपना अपराध न मानना और
|
|||
29. उल्टे बाँस बरेली को
|
विपरीत कार्य या आचरण करना
|
|||
30. ऊधो का न लेना, न माधो
|
किसी से कोई मतलब न रखना/
|
|||
का देना
|
सबसे अलग।
|
|||
31. ऊँची दुकान फीका
पकवान
|
वास्तविकता से अधिक दिखावा।
|
|||
दिखावा ही दिखावा। केवल बाहरी दिखावा।
|
||||
32. ऊँट के मुँह में जीरा
|
आवश्यकता की नगण्य पूर्ति
|
|||
33. ऊखली में सिर दिया तो
|
जब दृढ़ निश्चय कर लिया तो
|
|||
मूसल का क्या डर
|
बाधाओं से क्या घबराना
|
|||
34. ऊँट किस करवट बैठता है
|
परिणाम में अनिश्चितता होना।
|
|||
35. एक पंथ दो काज
|
एक काम से दोहरा लाभ/एक तरकीब से दो
|
|||
कार्य करना/एक साधन से दो कार्य करना।
|
||||
36. एक अनार सौ बीमार
|
वस्तु कम, चाहने वाले अधिक/
|
|||
एक स्थान के लिये सैकड़ों प्रत्याशी
|
||||
37. एक मछली सारा तालाब
गंदा
|
एक की बुराई से साथी भी बदनाम
|
|||
कर देती है
|
होते हैं।
|
|||
38. एक म्यान में दो
तलवारें नहीं
|
दो प्रशासक एक ही जगह एक
|
|||
समा सकतीं
|
साथ शासन नहीं कर सकते।
|
|||
39. एक हाथ से ताली नहीं
बजती
|
लड़ाई का कारण दोनों पक्ष होते हैं।
|
|||
40. एक तो करेला दूजे
नीम चढ़ा
|
बुरे से और अधिक बुरा होना/
|
|||
एक बुराई के साथ दूसरी बुराई का जुड़ जाना।
|
||||
41. कागज की नाव नहीं चलती
|
बेइमानी से किसी कार्य में सफलता नहीं मिलती।
|
|||
42. काला अक्षर भैंस
बराबर
|
बिल्कुल निरक्षर होना।
|
|||
43. कंगाली में आटा गीला
|
संकट पर संकट आना।
|
|||
44. कोयले की दलाली में
|
बुरे काम का परिणाम भी बुरा
|
|||
हाथ काले
|
होता है/ दुष्टों की संगति से कलंकित होते
हैं।
|
|||
45. का वर्षा जब कृषि
सुखानी
|
अवसर बीत जाने पर साधन की प्राप्ति बेकार है।
|
|||
46. कहीं की ईंट कहीं का
रोड़ा
|
अलग-अलग स्वभाव वालों को एक जगह एकत्र
|
|||
भानुमति ने कुनबा जोड़ा
|
करना/इधर-उधर से सामग्री जुटा कर कोई
|
|||
निकृष्ट वस्तु का निर्माण करना।
|
||||
47. कभी नाव गाड़ी पर कभी
|
एक-दूसरे के काम आना
|
|||
गाड़ी नाव पर
|
परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं।
|
|||
48. काबुल में क्या गधे
नहीं होते
|
मूर्ख सब जगह मिलते हैं।
|
|||
49. कहने पर कुम्हार गधे
पर
|
कहने से जिद्दी व्यक्ति काम
|
|||
नहीं चढ़ता
|
नहीं करता।
|
|||
50. कोउ नृप होउ हमें का
हानि
|
अपने काम से मतलब रखना।
|
|||
51. कौवा चला हंस की चाल,
|
दूसरों के अनधिकार अनुकरण
|
|||
भूल गया अपनी भी चाल
|
से अपने रीति रिवाज भूल जाना।
|
|||
52. कभी घी घना तो कभी
|
परिस्थितियाँ सदा एक सी
|
|||
मुट्ठी चना
|
नहीं रहतीं।
|
|||
53. करले सो काम भजले सो
राम
|
एक निष्ठ होकर कर्म और भक्ति करना
|
|||
54. काज परै कछु और है, काज
|
दुनिया बड़ी स्वार्थी है काम
|
|||
सरै कछु और
|
निकाल कर मुँह फेर लेते हैं।
|
|||
55. खोदा पहाड़ निकली
चुहिया
|
अधिक परिश्रम से कम लाभ होना
|
|||
56. खरबूजे को देखकर
खरबूजा
|
स्पर्धावश काम करना/साथी को
|
|||
रंग बदलता है
|
देखकर दूसरा साथी भी वैसा ही व्यवहार करता
है।
|
|||
57. खग जाने खग ही की
|
मूर्ख व्यक्ति मूर्ख की बात
|
|||
भाषा
|
समझता है।
|
|||
58. खिसियानी बिल्ली खम्भा
खोंसे
|
शक्तिशाली पर वश न चलने के
|
|||
59. गागर में सागर भरना
|
कारण कमजोर पर क्रोध करना
|
|||
60. गुरु तो गुड़ रहे चेले
शक्कर
|
थोड़े में बहुत कुछ कह देना
|
|||
हो गये
|
चेले का गुरु से अधिक ज्ञानवान
|
|||
61. गवाह चुस्त मुद्दई
सुस्त
|
होना
|
|||
62. गुड़ खाए और गुलगुलों
से
|
स्वयं की अपेक्षा दूसरों का उसके
|
|||
परहेज
|
लिए अधिक प्रयत्नशील होना
|
|||
63. गाँव का जोगी जोगना, आन
|
झूठा ढोंग रचना
|
|||
गाँव का सिद्ध
|
अपने स्थान पर सम्मान नहीं
|
|||
64. गरीब तेरे तीन
नाम-झूठा,
|
होता।
|
|||
पापी, बेईमान
|
गरीब पर ही सदैव दोष मढ़े जाते
|
|||
65. गुड़ दिये मरे तो
जहर क्यों दे
|
हैं। निर्धनता सदैव अपमानित होती है।
|
|||
66. गंगा गये गंगादास यमुना
गये
|
प्रेम से कार्य हो जाये तो फिर दण्ड क्यों।
|
|||
यमुनादास
|
अवसरवादी होना
|
|||
67. गोद में छोरा शहर में
ढिंढोरा
|
पास की वस्तु को दूर खोजना
|
|||
68. गरजते बादल बरसते
नहीं
|
कहने वाले (शोर मचाने वाले) कुछ करते नहीं
|
|||
69. गुरु कीजै जान, पानी पीवै
|
अच्छी तरह समझ बूझकर काम
|
|||
छान
|
करना
|
|||
70. घर-घर मिट्टी के
चूल्हे हैं
|
सबकी एक सी स्थिति का होना
|
|||
71. घोड़ा घास से दोस्ती
करे तो
|
सभी समान रूप से खोखले हैं।
|
|||
क्या खाये
|
मजदूरी लेने में संकोच कैसा ?
|
|||
72. घर का भेदी लंका
ढाहे
|
घरेलू शत्रु प्रबल होता है।
|
|||
73. घर की मुर्गी दाल
बराबर
|
अधिक परिचय से सम्मान कम/
|
|||
घरेलू साधनों का मूल्यहीन होना
|
||||
74. घर बैठे गंगा आना
|
बिना प्रयत्न के लाभ, सफलता मिलना
|
|||
75. घर मैं नहीं दाने
बुढि़या
|
झूठा दिखावा करना
|
|||
चली भुनाने
|
अवसर का लाभ न उठाकर उसकी
|
|||
76. घर आये नाग न पूजै, बाँबी
|
खोज में जाना
|
|||
पूजन जाय
|
||||
77. घर का जोगी जोगना, आन
|
विद्वान का अपने घर की अपेक्षा
|
|||
गाँव का सिद्ध
|
बाहर अधिक सम्मान/परिचित
|
|||
की अपेक्षा अपरिचित का विशेष आदर
|
||||
78. चमड़ी जाय पर दमड़ी
न जाए
|
बहुत कंजूस होना
|
|||
79. चलती का नाम गाड़ी
|
काम का चलते रहना/बनी बात के सब साथी होते
हैं।
|
|||
80. चंदन की चुटकी भली
गाड़ी
|
अच्छी वस्तु तो थोड़ी भी भली
|
|||
81. चार दिन की चाँदनी फिर
|
सुख का समय थोड़ा ही
|
|||
अँधेरी रात
|
होता है।
|
|||
82. चिकने घड़े पर पानी
नहीं
|
निर्लज्ज पर किसी बात का असर
|
|||
ठहरता
|
नहीं होता।
|
|||
83. चिराग तले अँधेरा
|
दूसरों को उपदेश देना स्वयं अज्ञान में रहना
|
|||
84. चींटी के पर निकलना
|
बुरा समय आने से पूर्व बुद्धि का, नष्ट होना
|
|||
85. चील के घोंसले में
माँस कहाँ?
|
भूखे के घर भोजन मिलना असंभव होता है
|
|||
86. चुपड़ी और दो-दो
|
लाभ में लाभ होना
|
|||
87. चोरी का माल मोरी में
|
बुरी कमाई बुरे कार्यों में नष्ट होती है
|
|||
88. चोर की दाढ़ी में
तिनका
|
अपराधी का सशंकित होना
|
|||
अपराधी के कार्यों से दोष प्रकट हो जाता है।
|
||||
89. चोर-चोर मौसेरे भाई
|
दुष्ट लोग प्रायः एक जैसे होते
|
|||
90. छछुंदर के सिर में
चमेली
|
हैं एक से स्वभाव वाले लोगों में मित्रता
होना
|
|||
का तेल
|
अयोग्य व्यक्ति के पास अच्छी
|
|||
वस्तु होना
|
||||
91. छोटे मुँह बड़ी बात
|
हैसियत से अधिक बातें करना
|
|||
92. जहाँ काम आवै सुई का
|
छोटी वस्तु से जहाँ काम निकलता
|
|||
करै तरवारि
|
है वहाँ बड़ी वस्तु का उपयोग नहीं होता है।
|
|||
93. जल में रहकर मगर से
बैर
|
बड़े आश्रयदाता से दुश्मनी ठीक नहीं
|
|||
94. जब तक साँस तब तक आस
|
जीवन पर्यन्त आशान्वित रहना
|
|||
95. जंगल में मोर नाचा
|
दूसरों के सामने उपस्थित होने पर ही गुणों की
|
|||
किसने देखा
|
कद्र होती है। गुणों का प्रदर्शन उपयुक्त
स्थान पर।
|
|||
96. जननी जन्मभूमिश्च
स्वर्गादपि
|
मातृभूमि का महत्त्व स्वर्ग से
|
|||
गरीयसी
|
भी बढ़कर है।
|
|||
97. जहाँ मुर्गा नहीं
बोलता वहांँ
|
किसी के बिना कोई काम नहीं
|
|||
क्या सवेरा नहीं होता
|
रुकता कोई अपरिहार्य नहीं है।
|
|||
98. जहाँ न पहुँचे रवि
वहाँ
|
कवि दूर की बात सोचता है
|
|||
पहुँचे कवि
|
सीमातीत कल्पना करना
|
|||
99. जाके पैर न फटी बिवाई, सो
|
जिसने कभी दुःख नहीं देखा वह
|
|||
क्या जाने पीर पराई
|
दूसरों का दुःख क्या अनुभव करे
|
|||
100. जाकी रही भावना
जैसी, हरि
|
भावनानुकूल (प्राप्ति का होना)
|
|||
मूरत देखी तिन तैसी
|
औरों को देखना
|
|||
101. जान बची और लाखों पाये
|
प्राण सबसे प्रिय होते हैं।
|
|||
102. जाको राखे साइयाँ
मारि
|
ईश्वर रक्षक हो तो फिर डर
|
|||
सके न कोय
|
किसका, कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
|
|||
103. जिस थाली में खाये
उसी में
|
विश्वासघात करना। भलाई करने
|
|||
छेद करना
|
वाले का ही बुरा करना। कृतघ्न होना
|
|||
104. जिसकी लाठी उसकी
भैंस
|
शक्तिशाली की विजय होती है
|
|||
105. जिन खोजा तिन
पाइयाँ
|
प्रयत्न करने वाले को सफलता/
|
|||
गहरे पानी पैठ
|
लाभ अवश्य मिलता है।
|
|||
106. जो ताको काँटा बुवै
ताहि
|
अपना बुरा करने वालों के साथ
|
|||
बोय तू फूल
|
भी भलाई का व्यवहार करो
|
|||
107. जादू वही जो सिर
चढ़कर बोलेः
|
उपाय वही अच्छा जो कारगर हो
|
|||
108. झटपट की घानी आधा तेल
|
जल्दबाजी का काम खराब ही
|
|||
आधा पानी
|
होता है।
|
|||
109. झूठ कहे सो लड्डू खाय
|
आजकल झूठे का
|
|||
साँच कहे सो मारा जाय
|
बोल बाला है।
|
|||
110. जैसी बहे बयार पीठ
तब
|
समयानुसार कार्य करना।
|
|||
वैसी दीजै
|
साधारण वस्तु हेतु खर्च अधिक
|
|||
111. टके का सौदा नौ टका
विदाई
|
सीधेपन से काम नहीं (चलता)
|
|||
112. टेढ़ी उँगली किये
बिना घी
|
निकलता।
|
|||
नहीं निकलता
|
थोड़ा नुकसान उठाकर धोखेबाज
|
|||
113. टके की हाँडी गई पर
कुत्ते
|
को पहचानना।
|
|||
की जात पहचान ली
|
संकट में थोड़ी सहायता भी लाभप्रद/पर्याप्त
होती है।
|
|||
114. डूबते को तिनके का
सहारा
|
सदा एक सी स्थिति बने रहना
|
|||
115. ढाक के तीन पात
|
बड़े-बड़े भी अन्धेर करते हैं।
|
|||
116. ढोल में पोल
|
सबसे अलग विचार बनाये रखना
|
|||
117. तीन लोक से मथुरा
न्यारी
|
पूरा नहीं तो जो कुछ मिल जाये उसी में संतोष
करना।
|
|||
118. तीर नहीं तो
तुक्का ही सही
|
चालाक से चालाकी से पेश आना
|
|||
119. तू डाल-डाल मैं
पात-पात
|
एक से बढ़कर एक चालाक होना
|
|||
नया अनुभव करना धैर्य के साथ सोच समझ कर
कार्य
|
||||
120. तेल देखो तेल की
धार देखो
|
करो परिणाम की प्रतीक्षा करो।
|
|||
121. तेली का तेल जले
मशालची
|
खर्च कोई करे बुरा किसी और
|
|||
का दिल जले
|
को ही लगे।
|
|||
122. तेते पाँव पसारिये
जेती लाम्बी
|
हैसियतानुसार खर्च करना/अपने
|
|||
सौर
|
सामथ्र्य के अनुसार ही कार्य करना
|
|||
123. तन पर नहीं लत्ता
पान खाये
|
अभावग्रस्त होने पर भी ठाठ से
|
|||
अलबत्ता
|
रहना/झूठा दिखावा करना।
|
|||
124. तीन बुलाए तेरह
आये
|
अनिमन्त्रित व्यक्ति का आना।
|
|||
125. तीन कनौजिये तेरह
चूल्हे
|
व्यर्थ की नुक्ता-चीनी करना। ढोंग करना।
|
|||
126. थोथा चना बाजे घना
|
गुणहीन व्यक्ति अधिक डींगें
|
|||
मारता है/आडम्बर करता है।
|
||||
127. दूध का दूध पानी का
पानी
|
सही सही न्याय करना।
|
|||
128. दमड़ी की हाँडी भी
ठोक
|
छोटी चीज को भी देखभाल
|
|||
बजाकर लेते हैं
|
कर लेते हैं।
|
|||
129. दान की बछिया के दाँत
नहीं
|
मुफ्त की वस्तु के गुण नहीं
|
|||
गिने जाते
|
देखे जाते।
|
|||
130. दाल भात में मूसल चंद
|
किसी के कार्य में व्यर्थ में दखल देना।
|
|||
131. दुविधा में दोनों गये
माया
|
संदेह की स्थिति में कुछ भी हाथ
|
|||
मिली न राम
|
नहीं लगना।
|
|||
132. दूध का जला छाछ को
|
एक बार धोखा खाया व्यक्ति
|
|||
फूँक फूँक कर पीता है
|
दुबारा सावधानी बरतता है।
|
|||
133. दूर के ढोल सुहाने
लगते हैं
|
दूरवर्ती वस्तुएँ अच्छी मालूम होती हैं दूर
से ही वस्तु का
|
|||
अच्छा लगना पास आने पर वास्तविकता का पता
लगना
|
||||
134. दैव दैव आलसी पुकारा
|
आलसी व्यक्ति भाग्यवादी होता है
|
|||
135. धोबी का कुत्ता घर का
न
|
किधर का भी न रहना न
|
|||
घाट का
|
इधर का न उधर का
|
|||
136. न नौ मन तेल होगा और न
|
ऐसी अनहोनी शर्त रखना जो
|
|||
राधा नाचेगी
|
पूरी न हो सके/बहाने बनाना।
|
|||
137. न रहेगा बाँस न बजेगी
बाँसुरी
|
झगड़े को जड़ से ही नष्ट करना
|
|||
138. नक्कार खाने में तूती
की
|
अराजकता में सुनवाई न होना
|
|||
आवाज
|
बड़ों के समक्ष छोटों की कोई पूछ नहीं।
|
|||
139. न सावन सूखा न भादों
हरा
|
सदैव एक सी तंग हालत रहना
|
|||
140. नाच न जाने आँगन
टेढ़ा
|
अपना दोष दूसरों पर मढ़ना/
|
|||
अपनी अयोग्यता को छिपाने हेतु दूसरों में दोष
ढूँढ़ना।
|
||||
141. नाम बड़े और दर्शन
खोटे
|
बड़ों में बड़प्पन न होना गुण कम किन्तु
प्रशंसा अधिक।
|
|||
142. नीम हकीम खतरे जान, नीम
|
अध कचरे ज्ञान वाला अनुभवहीन
|
|||
मुल्ला खतरे ईमान
|
व्यक्ति अधिक हानिकारक होता है।
|
|||
143. नेकी और पूछ-पूछ
|
भलाई करने में भला पूछना क्या?
|
|||
144. नेकी कर कुए में डाल
|
भलाई कर भूल जाना चाहिये।
|
|||
145. नौ नगद, न तेरह उधार
|
भविष्य की बड़ी आशा से तत्काल का थोड़ा लाभ
|
|||
146. नौ दिन चले अढ़ाई कोस
|
अच्छा/व्यापार में उधार की अपेक्षा नगद को
महत्त्व देना।
|
|||
147. नौ सौ चूहे खाय
बिल्ली
|
बहुत धीमी गति से कार्य का होना
|
|||
हज को चली
|
बहुत पाप करके पश्चाताप
|
|||
148. पढ़े पर गुने नहीं
|
करने का ढोंग करना।
|
|||
149. पढ़े फारसी बेचे
तेल, देखो यह
|
अनुभवहीन होना।
|
|||
विधना का खेल
|
शिक्षित होते हुए भी दुर्भाग्य से
|
|||
150. पराधीन सपनेहु सुख
नाहीं
|
निम्न कार्य करना।
|
|||
151. पाँचों उंगलियाँ
बराबर नहीं होती
|
परतंत्र व्यक्ति कभी सुखी नहीं होता।
|
|||
152. प्रभुता पाय काहि मद
नाहीं
|
ः सभी समान नहीं हो सकते।
|
|||
153. पानी में रहकर मगर
से बैर
|
अधिकार प्राप्ति पर किसे गर्व नहीं होता।
|
|||
154. प्यादे से फरजी भयो
टेढ़ो-
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शक्तिशाली आश्रयदाता से वैर करना।
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टेढ़ो जाय
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छोटा आदमी बड़े पद पर पहुँचकर
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155. फटा मन और फटा दूध
फिर
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इतराकर चलता है।
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नहीं मिलता।
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एक बार मतभेद होने पर पुनः
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156. बारह बरस में घूरे
के दिन
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मेल नहीं हो सकता।
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भी फिरते हैं
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कभी न कभी सबका भाग्योदय
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157. बंदर क्या जाने
अदरक का
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होता है।
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स्वाद
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मूर्ख को गुण की परख न होना। अज्ञानी किसी के
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158. बद अच्छा, बदनाम बुरा
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महत्त्व को आँक नहीं सकता।
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159. बकरे की माँ कब तक खैर
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कलंकित होना बुरा होने से भी बुरा है।
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मनायेगी
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जब संकट आना ही है तो उससे
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169. बावन तोले पाव
रत्ती
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कब तक बचा जा सकता है
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160. बाप न मारी मेंढकी
बेटा तीरंदाजः
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बिल्कुल ठीक या सही सही होना
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161. बाँबी में हाथ तू
डाल मंत्र
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बहुत अधिक बातूनी या गप्पी होना
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मैं पढूँ
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खतरे का कार्य दूसरों को सौंपकर
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162. बापू भला न भैया, सबसे
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स्वयं अलग रहना।
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बड़ा रुपया
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आजकल पैसा ही सब कुछ है।
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163. बिल्ली के भाग छींका
टूटना
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संयोग से किसी कार्य का अच्छा
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होना/अनायास अप्रत्याशित वस्तु की प्राप्ति
होना।
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164. बिन माँगे मोती
मिले माँगे
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भाग्य से स्वतः मिलता है इच्छा
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मिले न भीख
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से नहीं।
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165. बिना रोए माँ भी
दूध नहीं
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प्रयत्न के बिना कोई कार्य
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पिलाती
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नहीं होता।
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166. बैठे से बेगार भली
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खाली बैठे रहने से तो किसी का
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कुछ काम करना अच्छा।
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167. बोया पेड़ बबूल का
आम
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बुरे कर्म कर अच्छे फल की
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कहाँ से खाए
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इच्छा करना व्यर्थ है।
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168. भई गति साँप छछंूदर
जैसी
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दुविधा में पड़ना।
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169. भूल गये राग रंग
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गृहस्थी के जंजाल में फंसना
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भूल गये छकड़ी तीन चीज
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भूख लगने पर कुछ भी अच्छा नहीं लगता।
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याद रही नोन, तेल, लकड़ी
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हाथ पड़े सोई लेना जो बच
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170. भूखे भजन न होय
गोपाला
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जाए उसी से संतुष्टि/कुछ नहीं
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171. भागते भूत की लंगोट
भली
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से जो कुछ भी मिल जाए वह अच्छा।
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172. भैंस के आगे बीन बजाये
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मूर्ख को उपदेश देना व्यर्थ है।
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भैंस खड़ी पगुराय
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योग्यता के अभाव में उलझनदार
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173. बिच्छू का मंत्र न
जाने साँप
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काम करने का बीड़ा उठा लेना।
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के बिल में हाथ डाले
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मन पवित्र तो घर में तीर्थ है।
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174. मन चंगा तो कटौती में
गंगा
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मुसीबत में गलत कार्य करने को
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175. मरता क्या न करता
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भी तैयार होना पड़ता है।
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176. मानो तो देव नहीं तो
पत्थर
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विश्वास फलदायक होता है।
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177. मान न मान मैं तैरा
मेहमान
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जबरदस्ती गले पड़ना।
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178. मार के आगे भूत भागता
है
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दण्ड से सभी भयभीत होते हैं।
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179. मियाँ बीबी राजी तो
क्या
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यदि आपस में प्रेम है तो तीसरा
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करेगा काजी ?
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क्या कर सकता है ?
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180. मुख में राम बगल में
छुरी
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ऊपर से मित्रता अन्दर शत्रुता धोखेबाजी करना।
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181. मेरी बिल्ली मुझ से
ही म्याऊँ
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आश्रयदाता का ही विरोध करना
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182. मेंढ़की को जुकाम होना
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नीच आदमियों द्वारा नखरे करना।
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183. मन के हारे हार है
मन के
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साहस बनाये रखना आवश्यक है।
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जीते जीत
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हतोत्साहित होने पर असफलता
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184. यथा राजा तथा
प्रजा
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व उत्साहपूर्वक कार्य करने से जीत होती है।
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185. यथा नाम तथा गुण
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जैसा स्वामी वैसा सेवक
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186. यह मुँह और मसूर की
दाल
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नाम के अनुसार गुण का होना।
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187. मुफ्त का चंदन, घिस मेरे नंदन
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योग्यता से अधिक पाने की इच्छाकरना
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188. रस्सी जल गई पर ऐंठ
न गई
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मुफ्त में मिली वस्तु का दुरुपयोग करना।
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189. रंग में भंग पड़ना
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सर्वनाश होने पर भी घमण्ड बने रहना/टेक न
छोड़ना।
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190. राम नाम जपना, पराया
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आनन्द में बाधा उत्पन्न होना।
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माल अपना
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मक्कारी करना।
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191. रोग का घर खाँसी, झगड़े
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हँसी मजाक झगड़े का कारण
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का घर हाँसी
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बन जाती है।
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192. रोज कुआ खोदना रोज
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प्रतिदिन कमाकर खाना रोज
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पानी पीना
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कमाना रोज खा जाना।
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193. लकड़ी के बल बन्दरी
नाचे
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भयवश ही कार्य संभव है।
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194. लम्बा टीका मधुरी
बानी
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पाखण्डी हमेशा दगाबाज होते हैं।
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दगेबाजी की यही निशानी
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195. लातों के भूत बातों
से नहीं
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नीच व्यक्ति दण्ड से/भय से कार्य
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मानते
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करते हैं कहने से नहीं।
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196. लोहे को लोहा ही काटता
है
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बुराई को बुराई से ही जीता जाता है।
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197. वक्त पड़े जब
जानिये को
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विपत्ति/अवसर पर ही शत्रु व
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बैरी को मीत
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मित्र की पहचान होती है।
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198. विधिकर लिखा को
मेटनहारा
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भाग्य को कोई बदल नहीं सकता।
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199. विनाश काले विपरीत
बुद्धि
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विपत्ति आने पर बुद्धि भी नष्ट हो जाती है।
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200. शबरी के बेर
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प्रेममय तुच्छ भेंट
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201. शक्कर खोर को शक्कर
मिल
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जरूरतमंद को उसकी वस्तु सुलभ
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ही जाती है
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हो ही जाती है।
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202. शुभस्य शीघ्रम
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शुभ कार्य में शीघ्रता करनी चाहिए।
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203. शठे शाठ्यं
समाचरेत
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दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार करना
चाहिये।
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204. साँच को आँच नहीं
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सच्चा व्यक्ति कभी डरता नहीं।
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205. सब धान बाईस पंसेरी
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अविवेकी लोगों की दृष्टि में गुणी
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और मूर्ख सभी व्यक्ति बराबर होते हैं।
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206. सब दिन होत न एक समान
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जीवन में सुख-दुःख आते रहते
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हैं, क्योंकि समय परिवर्तनशील होता है।
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207. सैइयाँ भये कोतवाल अब
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अपनों के उच्चपद पर होने से
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काहे का डर
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बुरे कार्य बे हिचक करना।
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208. समरथ को नहीं दोष
गुसाईं
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गलती होने पर भी सामथ्र्यवान
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को कोई कुछ नहीं कहता।
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209. सावन सूखा न भादों
हरा
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सदैव एक सी स्थिति बने रहना।
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210. साँप मर जाये और लाठी
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सुविधापूर्वक कार्य होना/बिना
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न टूटे
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हानि के कार्य का बन जाना।
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211. सावन के अंधे को हरा
ही
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अपने समान सभी को
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हरा सूझता है
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समझना।
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212. सीधी अँगुली घी
नहीं निकलता
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सीधेपन से कोई कार्य नहीं होता
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213. सिर मुंडाते ही
ओले पड़ना
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कार्य प्रारम्भ करते ही बाधा उत्पन्न होना।
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214. सोने में सुगन्ध
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अच्छे में और अच्छा।
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215. सौ सुनार की एक
लुहार की
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सैंकड़ों छोटे उपायों से एक बड़ा उपाय अच्छा।
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216. सूप बोले तो बोले
छलनी भी
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दोषी का बोलना ठीक नहीं। बोले
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217. हथेली पर दही नहीं
जमता
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हर कार्य के होने में समय लगता है
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218. हथेली पर सरसों नहीं
उगती
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कार्य के अनुसार समय भी लगता है।
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219. हल्दी लगे न फिटकरी
रंग
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आसानी से काम बन जाना
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चोखा आ जाय
|
कम खर्च में अच्छा कार्य।
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220. हाथ कंगन को आरसी
क्या
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प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता क्या ?
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221. हाथी के दाँत खाने के
और
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कपटपूर्ण व्यवहार/कहे कुछ करे
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दिखाने के और
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कुछ/कथनी व करनी में अन्तर।
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222. होनहार बिरवान के होत
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महान व्यक्तियों के लक्षण बचपन
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चीकने पात
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में ही नजर आ जाते हैं।
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223. हाथ सुमरिनी बगल
कतरनी
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कपटपूर्ण व्यवहार करना।
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