हिंदी की 223 लोकाक्ति : Exam की दृष्टी से महत्वपूर्ण

1. अपना रख, पराया चख
अपना बचाकर दूसरों का माल हड़प करना
2. अपनी करनी पार उतरनी
स्वयं का परिश्रम ही काम आता है।
3. अकेला चना भाड़ नहीं
अकेला व्यक्ति शक्ति हीन होता है।
फोड़ सकता
4. अधजल गगरी छलकत जाय
ओछा आदमी अधिक इतराता है।
5. अंधों में काना राजा
मूर्खों में कम ज्ञान वाला भी आदर पाता है।
6. अंधे के हाथ बटेर लगना
अयोग्य व्यक्ति को बिना परिश्रम
संयोग से अच्छी वस्तु मिलना।
7. अंधा पीसे कुत्ता खाय
मूर्खौं की मेहनत का लाभ अन्य
उठाते हैं। असावधानी से अयोग्य को लाभ।
8. अब पछताये होत क्या, जब
अवसर निकल जाने पर पछताने
चिडि़या चुग गई खेत
से कोई लाभ नहीं।
9. अन्धे के आगे रोवै अपने
निर्दय व्यक्ति या अयोग्य व्यक्ति
नैना खावैं
से सहानुभूति की अपेक्षा करना व्यर्थ है।
10. अपनी गली में कुत्ता भी शेर
अपने क्षेत्र में कमजोर भी बलवान
होता है
बन जाता है।
11. अन्धेर नगरी चैपट राजा
प्रशासन की अयोग्यता से सर्वत्र अराजकता आ जाना।
12. अन्धा क्या चाहे दो आँखें
बिना प्रयास वांछित वस्तु का मिल जाना।
13. अक्ल बड़ी या भैंस
शारीरिक बल से बुद्धिबल श्रेष्ठ होता है।
14. अपना हाथ जगन्नाथ
अपना काम अपने ही हाथों ठीक रहता है।
15. अपनी-अपनी डपली
तालमेल का अभाव/सबका
अपना-अपना राग
अलग-अलग मत होना/एकमत का अभाव
16. अंधा बाँटे रेवड़ी फिर-फिर
स्वार्थी व्यक्ति अधिकार पाकर
अपनों को देय
अपने लोगों की सहायता करता है।
17. अंत भला तो सब भला
कार्य का अन्तिम चरण ही महत्त्वपूर्ण होता है।
18. आ बैल मुझे मार
जानबूझ कर मुसीबत में फंसना
19. आम के आम गुठली के दाम
हर प्रकार का लाभ/एक काम से दो लाभ
20. आँख का अंधा नाम नयन सुख
गुणों के विपरीत नाम होना।
21. आगे कुआँ पीछे खाई
दोनों/सब ओर से विपत्ति में फँसना
22. आप भला जग भला
अपने अच्छे व्यवहार से सब जगह आदर मिलता है।
23. आये थे हरि भजन को
उद्देश्य से भटक जाना/श्रेष्ठ काम करने की बजाय
ओटन लगे कपास
तुच्छ कार्य करना/कार्य विशेष की उपेक्षा कर किसी
अन्य कार्य में लग जाना।
24. आधा तीतर आधा बटेर
अनमेल मिश्रण/बेमेल चीजें
जिनमें सामंजस्य का अभाव हो।
25. इन तिलों में तेल नहीं
किसी लाभ की आशा न होना।
27. आठ कनौजिए नौ चूल्हे
फूट होना।
28. उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे
अपना अपराध न मानना और
29. उल्टे बाँस बरेली को
विपरीत कार्य या आचरण करना
30. ऊधो का न लेना, न माधो
किसी से कोई मतलब न रखना/
का देना
सबसे अलग।
31. ऊँची दुकान फीका पकवान
वास्तविकता से अधिक दिखावा।
दिखावा ही दिखावा। केवल बाहरी दिखावा।
32. ऊँट के मुँह में जीरा
आवश्यकता की नगण्य पूर्ति
33. ऊखली में सिर दिया तो
जब दृढ़ निश्चय कर लिया तो
मूसल का क्या डर
बाधाओं से क्या घबराना
34. ऊँट किस करवट बैठता है
परिणाम में अनिश्चितता होना।
35. एक पंथ दो काज
एक काम से दोहरा लाभ/एक तरकीब से दो
कार्य करना/एक साधन से दो कार्य करना।
36. एक अनार सौ बीमार
वस्तु कम, चाहने वाले अधिक/
एक स्थान के लिये सैकड़ों प्रत्याशी
37. एक मछली सारा तालाब गंदा
एक की बुराई से साथी भी बदनाम
कर देती है
होते हैं।
38. एक म्यान में दो तलवारें नहीं
दो प्रशासक एक ही जगह एक
समा सकतीं
साथ शासन नहीं कर सकते।
39. एक हाथ से ताली नहीं बजती
लड़ाई का कारण दोनों पक्ष होते हैं।
40. एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा
बुरे से और अधिक बुरा होना/
एक बुराई के साथ दूसरी बुराई का जुड़ जाना।
41. कागज की नाव नहीं चलती
बेइमानी से किसी कार्य में सफलता नहीं मिलती।
42. काला अक्षर भैंस बराबर
बिल्कुल निरक्षर होना।
43. कंगाली में आटा गीला
संकट पर संकट आना।
44. कोयले की दलाली में
बुरे काम का परिणाम भी बुरा
हाथ काले
होता है/ दुष्टों की संगति से कलंकित होते हैं।
45. का वर्षा जब कृषि सुखानी
अवसर बीत जाने पर साधन की प्राप्ति बेकार है।
46. कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा
अलग-अलग स्वभाव वालों को एक जगह एकत्र
भानुमति ने कुनबा जोड़ा
करना/इधर-उधर से सामग्री जुटा कर कोई
निकृष्ट वस्तु का निर्माण करना।
47. कभी नाव गाड़ी पर कभी
एक-दूसरे के काम आना
गाड़ी नाव पर
परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं।
48. काबुल में क्या गधे नहीं होते
मूर्ख सब जगह मिलते हैं।
49. कहने पर कुम्हार गधे पर
कहने से जिद्दी व्यक्ति काम
नहीं चढ़ता
नहीं करता।
50. कोउ नृप होउ हमें का हानि
अपने काम से मतलब रखना।
51. कौवा चला हंस की चाल,
दूसरों के अनधिकार अनुकरण
भूल गया अपनी भी चाल
से अपने रीति रिवाज भूल जाना।
52. कभी घी घना तो कभी
परिस्थितियाँ सदा एक सी
मुट्ठी चना
नहीं रहतीं।
53. करले सो काम भजले सो राम
एक निष्ठ होकर कर्म और भक्ति करना
54. काज परै कछु और है, काज
दुनिया बड़ी स्वार्थी है काम
सरै कछु और
निकाल कर मुँह फेर लेते हैं।
55. खोदा पहाड़ निकली चुहिया
अधिक परिश्रम से कम लाभ होना
56. खरबूजे को देखकर खरबूजा
स्पर्धावश काम करना/साथी को
रंग बदलता है
देखकर दूसरा साथी भी वैसा ही व्यवहार करता है।
57. खग जाने खग ही की
मूर्ख व्यक्ति मूर्ख की बात
भाषा
समझता है।
58. खिसियानी बिल्ली खम्भा खोंसे
शक्तिशाली पर वश न चलने के
59. गागर में सागर भरना
कारण कमजोर पर क्रोध करना
60. गुरु तो गुड़ रहे चेले शक्कर
थोड़े में बहुत कुछ कह देना
हो गये
चेले का गुरु से अधिक ज्ञानवान
61. गवाह चुस्त मुद्दई सुस्त
होना
62. गुड़ खाए और गुलगुलों से
स्वयं की अपेक्षा दूसरों का उसके
परहेज
लिए अधिक प्रयत्नशील होना
63. गाँव का जोगी जोगना, आन
झूठा ढोंग रचना
गाँव का सिद्ध
अपने स्थान पर सम्मान नहीं
64. गरीब तेरे तीन नाम-झूठा,
होता।
पापी, बेईमान
गरीब पर ही सदैव दोष मढ़े जाते
65. गुड़ दिये मरे तो जहर क्यों दे
हैं। निर्धनता सदैव अपमानित होती है।
66. गंगा गये गंगादास यमुना गये
प्रेम से कार्य हो जाये तो फिर दण्ड क्यों।
यमुनादास
अवसरवादी होना
67. गोद में छोरा शहर में ढिंढोरा
पास की वस्तु को दूर खोजना
68. गरजते बादल बरसते नहीं
कहने वाले (शोर मचाने वाले) कुछ करते नहीं
69. गुरु कीजै जान, पानी पीवै
अच्छी तरह समझ बूझकर काम
छान
करना
70. घर-घर मिट्टी के चूल्हे हैं
सबकी एक सी स्थिति का होना
71. घोड़ा घास से दोस्ती करे तो
सभी समान रूप से खोखले हैं।
क्या खाये
मजदूरी लेने में संकोच कैसा ?
72. घर का भेदी लंका ढाहे
घरेलू शत्रु प्रबल होता है।
73. घर की मुर्गी दाल बराबर
अधिक परिचय से सम्मान कम/
घरेलू साधनों का मूल्यहीन होना
74. घर बैठे गंगा आना
बिना प्रयत्न के लाभ, सफलता मिलना
75. घर मैं नहीं दाने बुढि़या
झूठा दिखावा करना
चली भुनाने
अवसर का लाभ न उठाकर उसकी
76. घर आये नाग न पूजै, बाँबी
खोज में जाना
पूजन जाय
77. घर का जोगी जोगना, आन
विद्वान का अपने घर की अपेक्षा
गाँव का सिद्ध
बाहर अधिक सम्मान/परिचित
की अपेक्षा अपरिचित का विशेष आदर
78. चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाए
बहुत कंजूस होना
79. चलती का नाम गाड़ी
काम का चलते रहना/बनी बात के सब साथी होते हैं।
80. चंदन की चुटकी भली गाड़ी
अच्छी वस्तु तो थोड़ी भी भली
81. चार दिन की चाँदनी फिर
सुख का समय थोड़ा ही
अँधेरी रात
होता है।
82. चिकने घड़े पर पानी नहीं
निर्लज्ज पर किसी बात का असर
ठहरता
नहीं होता।
83. चिराग तले अँधेरा
दूसरों को उपदेश देना स्वयं अज्ञान में रहना
84. चींटी के पर निकलना
बुरा समय आने से पूर्व बुद्धि का, नष्ट होना
85. चील के घोंसले में माँस कहाँ?
भूखे के घर भोजन मिलना असंभव होता है
86. चुपड़ी और दो-दो
लाभ में लाभ होना
87. चोरी का माल मोरी में
बुरी कमाई बुरे कार्यों में नष्ट होती है
88. चोर की दाढ़ी में तिनका
अपराधी का सशंकित होना
अपराधी के कार्यों से दोष प्रकट हो जाता है।
89. चोर-चोर मौसेरे भाई
दुष्ट लोग प्रायः एक जैसे होते
90. छछुंदर के सिर में चमेली
हैं एक से स्वभाव वाले लोगों में मित्रता होना
का तेल
अयोग्य व्यक्ति के पास अच्छी
वस्तु होना
91. छोटे मुँह बड़ी बात
हैसियत से अधिक बातें करना
92. जहाँ काम आवै सुई का
छोटी वस्तु से जहाँ काम निकलता
करै तरवारि
है वहाँ बड़ी वस्तु का उपयोग नहीं होता है।
93. जल में रहकर मगर से बैर
बड़े आश्रयदाता से दुश्मनी ठीक नहीं
94. जब तक साँस तब तक आस
जीवन पर्यन्त आशान्वित रहना
95. जंगल में मोर नाचा
दूसरों के सामने उपस्थित होने पर ही गुणों की
किसने देखा
कद्र होती है। गुणों का प्रदर्शन उपयुक्त स्थान पर।
96. जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि
मातृभूमि का महत्त्व स्वर्ग से
गरीयसी
भी बढ़कर है।
97. जहाँ मुर्गा नहीं बोलता वहांँ
किसी के बिना कोई काम नहीं
क्या सवेरा नहीं होता
रुकता कोई अपरिहार्य नहीं है।
98. जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ
कवि दूर की बात सोचता है
पहुँचे कवि
सीमातीत कल्पना करना
99. जाके पैर न फटी बिवाई, सो
जिसने कभी दुःख नहीं देखा वह
क्या जाने पीर पराई
दूसरों का दुःख क्या अनुभव करे
100. जाकी रही भावना जैसी, हरि
भावनानुकूल (प्राप्ति का होना)
मूरत देखी तिन तैसी
औरों को देखना
101. जान बची और लाखों पाये
प्राण सबसे प्रिय होते हैं।
102. जाको राखे साइयाँ मारि
ईश्वर रक्षक हो तो फिर डर
सके न कोय
किसका, कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
103. जिस थाली में खाये उसी में
विश्वासघात करना। भलाई करने
छेद करना
वाले का ही बुरा करना। कृतघ्न होना
104. जिसकी लाठी उसकी भैंस
शक्तिशाली की विजय होती है
105. जिन खोजा तिन पाइयाँ
प्रयत्न करने वाले को सफलता/
गहरे पानी पैठ
लाभ अवश्य मिलता है।
106. जो ताको काँटा बुवै ताहि
अपना बुरा करने वालों के साथ
बोय तू फूल
भी भलाई का व्यवहार करो
107. जादू वही जो सिर चढ़कर बोलेः
उपाय वही अच्छा जो कारगर हो
108. झटपट की घानी आधा तेल
जल्दबाजी का काम खराब ही
आधा पानी
होता है।
109. झूठ कहे सो लड्डू खाय
आजकल झूठे का
साँच कहे सो मारा जाय
बोल बाला है।
110. जैसी बहे बयार पीठ तब
समयानुसार कार्य करना।
वैसी दीजै
साधारण वस्तु हेतु खर्च अधिक
111. टके का सौदा नौ टका विदाई
सीधेपन से काम नहीं (चलता)
112. टेढ़ी उँगली किये बिना घी
निकलता।
नहीं निकलता
थोड़ा नुकसान उठाकर धोखेबाज
113. टके की हाँडी गई पर कुत्ते
को पहचानना।
की जात पहचान ली
संकट में थोड़ी सहायता भी लाभप्रद/पर्याप्त होती है।
114. डूबते को तिनके का सहारा
सदा एक सी स्थिति बने रहना
115. ढाक के तीन पात
बड़े-बड़े भी अन्धेर करते हैं।
116. ढोल में पोल
सबसे अलग विचार बनाये रखना
117. तीन लोक से मथुरा न्यारी
पूरा नहीं तो जो कुछ मिल जाये उसी में संतोष करना।
118. तीर नहीं तो तुक्का ही सही
चालाक से चालाकी से पेश आना
119. तू डाल-डाल मैं पात-पात
एक से बढ़कर एक चालाक होना
नया अनुभव करना धैर्य के साथ सोच समझ कर कार्य
120. तेल देखो तेल की धार देखो
करो परिणाम की प्रतीक्षा करो।
121. तेली का तेल जले मशालची
खर्च कोई करे बुरा किसी और
का दिल जले
को ही लगे।
122. तेते पाँव पसारिये जेती लाम्बी
हैसियतानुसार खर्च करना/अपने
सौर
सामथ्र्य के अनुसार ही कार्य करना
123. तन पर नहीं लत्ता पान खाये
अभावग्रस्त होने पर भी ठाठ से
अलबत्ता
रहना/झूठा दिखावा करना।
124. तीन बुलाए तेरह आये
अनिमन्त्रित व्यक्ति का आना।
125. तीन कनौजिये तेरह चूल्हे
व्यर्थ की नुक्ता-चीनी करना। ढोंग करना।
126. थोथा चना बाजे घना
गुणहीन व्यक्ति अधिक डींगें
मारता है/आडम्बर करता है।
127. दूध का दूध पानी का पानी
सही सही न्याय करना।
128. दमड़ी की हाँडी भी ठोक
छोटी चीज को भी देखभाल
बजाकर लेते हैं
कर लेते हैं।
129. दान की बछिया के दाँत नहीं
मुफ्त की वस्तु के गुण नहीं
गिने जाते
देखे जाते।
130. दाल भात में मूसल चंद
किसी के कार्य में व्यर्थ में दखल देना।
131. दुविधा में दोनों गये माया
संदेह की स्थिति में कुछ भी हाथ
मिली न राम
नहीं लगना।
132. दूध का जला छाछ को
एक बार धोखा खाया व्यक्ति
फूँक फूँक कर पीता है
दुबारा सावधानी बरतता है।
133. दूर के ढोल सुहाने लगते हैं
दूरवर्ती वस्तुएँ अच्छी मालूम होती हैं दूर से ही वस्तु का
अच्छा लगना पास आने पर वास्तविकता का पता लगना
134. दैव दैव आलसी पुकारा
आलसी व्यक्ति भाग्यवादी होता है
135. धोबी का कुत्ता घर का न
किधर का भी न रहना न
घाट का
इधर का न उधर का
136. न नौ मन तेल होगा और न
ऐसी अनहोनी शर्त रखना जो
राधा नाचेगी
पूरी न हो सके/बहाने बनाना।
137. न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी
झगड़े को जड़ से ही नष्ट करना
138. नक्कार खाने में तूती की
अराजकता में सुनवाई न होना
आवाज
बड़ों के समक्ष छोटों की कोई पूछ नहीं।
139. न सावन सूखा न भादों हरा
सदैव एक सी तंग हालत रहना
140. नाच न जाने आँगन टेढ़ा
अपना दोष दूसरों पर मढ़ना/
अपनी अयोग्यता को छिपाने हेतु दूसरों में दोष ढूँढ़ना।
141. नाम बड़े और दर्शन खोटे
बड़ों में बड़प्पन न होना गुण कम किन्तु प्रशंसा अधिक।
142. नीम हकीम खतरे जान, नीम
अध कचरे ज्ञान वाला अनुभवहीन
मुल्ला खतरे ईमान
व्यक्ति अधिक हानिकारक होता है।
143. नेकी और पूछ-पूछ
भलाई करने में भला पूछना क्या?
144. नेकी कर कुए में डाल
भलाई कर भूल जाना चाहिये।
145. नौ नगद, न तेरह उधार
भविष्य की बड़ी आशा से तत्काल का थोड़ा लाभ
146. नौ दिन चले अढ़ाई कोस
अच्छा/व्यापार में उधार की अपेक्षा नगद को महत्त्व देना।
147. नौ सौ चूहे खाय बिल्ली
बहुत धीमी गति से कार्य का होना
हज को चली
बहुत पाप करके पश्चाताप
148. पढ़े पर गुने नहीं
करने का ढोंग करना।
149. पढ़े फारसी बेचे तेल, देखो यह
अनुभवहीन होना।
विधना का खेल
शिक्षित होते हुए भी दुर्भाग्य से
150. पराधीन सपनेहु सुख नाहीं
निम्न कार्य करना।
151. पाँचों उंगलियाँ बराबर नहीं होती
परतंत्र व्यक्ति कभी सुखी नहीं होता।
152. प्रभुता पाय काहि मद नाहीं
ः सभी समान नहीं हो सकते।
153. पानी में रहकर मगर से बैर
अधिकार प्राप्ति पर किसे गर्व नहीं होता।
154. प्यादे से फरजी भयो टेढ़ो-
शक्तिशाली आश्रयदाता से वैर करना।
टेढ़ो जाय
छोटा आदमी बड़े पद पर पहुँचकर
155. फटा मन और फटा दूध फिर
इतराकर चलता है।
नहीं मिलता।
एक बार मतभेद होने पर पुनः
156. बारह बरस में घूरे के दिन
मेल नहीं हो सकता।
भी फिरते हैं
कभी न कभी सबका भाग्योदय
157. बंदर क्या जाने अदरक का
होता है।
स्वाद
मूर्ख को गुण की परख न होना। अज्ञानी किसी के
158. बद अच्छा, बदनाम बुरा
महत्त्व को आँक नहीं सकता।
159. बकरे की माँ कब तक खैर
कलंकित होना बुरा होने से भी बुरा है।
मनायेगी
जब संकट आना ही है तो उससे
169. बावन तोले पाव रत्ती
कब तक बचा जा सकता है
160. बाप न मारी मेंढकी बेटा तीरंदाजः
बिल्कुल ठीक या सही सही होना
161. बाँबी में हाथ तू डाल मंत्र
बहुत अधिक बातूनी या गप्पी होना
मैं पढूँ
खतरे का कार्य दूसरों को सौंपकर
162. बापू भला न भैया, सबसे
स्वयं अलग रहना।
बड़ा रुपया
आजकल पैसा ही सब कुछ है।
163. बिल्ली के भाग छींका टूटना
संयोग से किसी कार्य का अच्छा
होना/अनायास अप्रत्याशित वस्तु की प्राप्ति होना।
164. बिन माँगे मोती मिले माँगे
भाग्य से स्वतः मिलता है इच्छा
मिले न भीख
से नहीं।
165. बिना रोए माँ भी दूध नहीं
प्रयत्न के बिना कोई कार्य
पिलाती
नहीं होता।
166. बैठे से बेगार भली
खाली बैठे रहने से तो किसी का
कुछ काम करना अच्छा।
167. बोया पेड़ बबूल का आम
बुरे कर्म कर अच्छे फल की
कहाँ से खाए
इच्छा करना व्यर्थ है।
168. भई गति साँप छछंूदर जैसी
दुविधा में पड़ना।
169. भूल गये राग रंग
गृहस्थी के जंजाल में फंसना
भूल गये छकड़ी तीन चीज
भूख लगने पर कुछ भी अच्छा नहीं लगता।
याद रही नोन, तेल, लकड़ी
हाथ पड़े सोई लेना जो बच
170. भूखे भजन न होय गोपाला
जाए उसी से संतुष्टि/कुछ नहीं
171. भागते भूत की लंगोट भली
से जो कुछ भी मिल जाए वह अच्छा।
172. भैंस के आगे बीन बजाये
मूर्ख को उपदेश देना व्यर्थ है।
भैंस खड़ी पगुराय
योग्यता के अभाव में उलझनदार
173. बिच्छू का मंत्र न जाने साँप
काम करने का बीड़ा उठा लेना।
के बिल में हाथ डाले
मन पवित्र तो घर में तीर्थ है।
174. मन चंगा तो कटौती में गंगा
मुसीबत में गलत कार्य करने को
175. मरता क्या न करता
भी तैयार होना पड़ता है।
176. मानो तो देव नहीं तो पत्थर
विश्वास फलदायक होता है।
177. मान न मान मैं तैरा मेहमान
जबरदस्ती गले पड़ना।
178. मार के आगे भूत भागता है
दण्ड से सभी भयभीत होते हैं।
179. मियाँ बीबी राजी तो क्या
यदि आपस में प्रेम है तो तीसरा
करेगा काजी ?
क्या कर सकता है ?
180. मुख में राम बगल में छुरी
ऊपर से मित्रता अन्दर शत्रुता धोखेबाजी करना।
181. मेरी बिल्ली मुझ से ही म्याऊँ
आश्रयदाता का ही विरोध करना
182. मेंढ़की को जुकाम होना
नीच आदमियों द्वारा नखरे करना।
183. मन के हारे हार है मन के
साहस बनाये रखना आवश्यक है।
जीते जीत
हतोत्साहित होने पर असफलता
184. यथा राजा तथा प्रजा
व उत्साहपूर्वक कार्य करने से जीत होती है।
185. यथा नाम तथा गुण
जैसा स्वामी वैसा सेवक
186. यह मुँह और मसूर की दाल
नाम के अनुसार गुण का होना।
187. मुफ्त का चंदन, घिस मेरे नंदन
योग्यता से अधिक पाने की इच्छाकरना
188. रस्सी जल गई पर ऐंठ न गई
मुफ्त में मिली वस्तु का दुरुपयोग करना।
189. रंग में भंग पड़ना
सर्वनाश होने पर भी घमण्ड बने रहना/टेक न छोड़ना।
190. राम नाम जपना, पराया
आनन्द में बाधा उत्पन्न होना।
माल अपना
मक्कारी करना।
191. रोग का घर खाँसी, झगड़े
हँसी मजाक झगड़े का कारण
का घर हाँसी
बन जाती है।
192. रोज कुआ खोदना रोज
प्रतिदिन कमाकर खाना रोज
पानी पीना
कमाना रोज खा जाना।
193. लकड़ी के बल बन्दरी नाचे
भयवश ही कार्य संभव है।
194. लम्बा टीका मधुरी बानी
पाखण्डी हमेशा दगाबाज होते हैं।
दगेबाजी की यही निशानी
195. लातों के भूत बातों से नहीं
नीच व्यक्ति दण्ड से/भय से कार्य
मानते
करते हैं कहने से नहीं।
196. लोहे को लोहा ही काटता है
बुराई को बुराई से ही जीता जाता है।
197. वक्त पड़े जब जानिये को
विपत्ति/अवसर पर ही शत्रु व
बैरी को मीत
मित्र की पहचान होती है।
198. विधिकर लिखा को मेटनहारा
भाग्य को कोई बदल नहीं सकता।
199. विनाश काले विपरीत बुद्धि
विपत्ति आने पर बुद्धि भी नष्ट हो जाती है।
200. शबरी के बेर
प्रेममय तुच्छ भेंट
201. शक्कर खोर को शक्कर मिल
जरूरतमंद को उसकी वस्तु सुलभ
ही जाती है
हो ही जाती है।
202. शुभस्य शीघ्रम
शुभ कार्य में शीघ्रता करनी चाहिए।
203. शठे शाठ्यं समाचरेत
दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार करना चाहिये।
204. साँच को आँच नहीं
सच्चा व्यक्ति कभी डरता नहीं।
205. सब धान बाईस पंसेरी
अविवेकी लोगों की दृष्टि में गुणी
और मूर्ख सभी व्यक्ति बराबर होते हैं।
206. सब दिन होत न एक समान
जीवन में सुख-दुःख आते रहते
हैं, क्योंकि समय परिवर्तनशील होता है।
207. सैइयाँ भये कोतवाल अब
अपनों के उच्चपद पर होने से
काहे का डर
बुरे कार्य बे हिचक करना।
208. समरथ को नहीं दोष गुसाईं
गलती होने पर भी सामथ्र्यवान
को कोई कुछ नहीं कहता।
209. सावन सूखा न भादों हरा
सदैव एक सी स्थिति बने रहना।
210. साँप मर जाये और लाठी
सुविधापूर्वक कार्य होना/बिना
न टूटे
हानि के कार्य का बन जाना।
211. सावन के अंधे को हरा ही
अपने समान सभी को
हरा सूझता है
समझना।
212. सीधी अँगुली घी नहीं निकलता
सीधेपन से कोई कार्य नहीं होता
213. सिर मुंडाते ही ओले पड़ना
कार्य प्रारम्भ करते ही बाधा उत्पन्न होना।
214. सोने में सुगन्ध
अच्छे में और अच्छा।
215. सौ सुनार की एक लुहार की
सैंकड़ों छोटे उपायों से एक बड़ा उपाय अच्छा।
216. सूप बोले तो बोले छलनी भी
दोषी का बोलना ठीक नहीं। बोले
217. हथेली पर दही नहीं जमता
हर कार्य के होने में समय लगता है
218. हथेली पर सरसों नहीं उगती
कार्य के अनुसार समय भी लगता है।
219. हल्दी लगे न फिटकरी रंग
आसानी से काम बन जाना
चोखा आ जाय
कम खर्च में अच्छा कार्य।
220. हाथ कंगन को आरसी क्या
प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता क्या ?
221. हाथी के दाँत खाने के और
कपटपूर्ण व्यवहार/कहे कुछ करे
दिखाने के और
कुछ/कथनी व करनी में अन्तर।
222. होनहार बिरवान के होत
महान व्यक्तियों के लक्षण बचपन
चीकने पात
में ही नजर आ जाते हैं।
223. हाथ सुमरिनी बगल कतरनी
कपटपूर्ण व्यवहार करना।


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