भोपाल गैस त्रासदी
31 साल पहले भोपाल में दुनिया की सबसे भीषण
औद्योगिक त्रासदी हुईं भोपाल में यूनियन कार्बाइड नामक अमेरिकी कंपनी का कारखाना
था जिसमें कीटनाशक बनाए जाते थे। 2 दिसंबर 1984 को रात के 2
बजे यूनियन कार्बाइड के इसी संयंत्रा से मिथाइल आइसोसाइनाइड (मिक) गैस रिसने
लगी। यह बेहद जहरीली गैस होती है...।
इस
दुर्घटना की चपेट में आने वाली अज़ीज़ा सुल्तान:
तकरीबन 12.30 बजे मुझे अपने बच्चे की तेश खाँसी की आवाज
सुनाई दी। कमरे में हल्की सी रोशनी थी। मैंने देखा कि पूरा कमरा सफेद धुँए से भरा
हुआ था। मुझे लोगों की चीखने की आवाजे सुनाई दीं। सब कह रहे थे, ‘भागो, भागो’। इसके बाद मुझे
भी खाँसी आने लगी। लगता था जैसे मैं आग में साँस ले रही हूँ। आँखें बुरी तरह जलने
लगीं।
तीन दिन के भीतर 8,000 से ज्यादा लोग मौत के मुँह में चले
गए। लाखों लोग गँभीर रूप से प्रभावित हुए।
शहरीली गैस के संपर्क में आने वाले ज्यादातर लोग गरीब
कामकाजी परिवारों के लोग थे। उनमें से लगभग 50,000 लोग आज भी
इतने बीमार हैं कि वुफछ काम नहीं कर सकते। जो लोग इस गैस के असर में आने के बावजूद
जिंदा रह गए उनमें से बहुत सारे लोग गंभीर श्वास विकारों, आँख की बीमारियों
और अन्य समस्याओं से पीडि़त हैं। बच्चों में अजीबो-गरीब विकृतियाँ पैदा हो रही
हैं। इस चित्रा में दिखाई दे रही लड़की इस बात का उदाहरण है।
यह तबाही कोई दुर्घटना नहीं थी। यूनियन कार्बाइड ने पैसा बचाने के लिए
सुरक्षा उपायों को जानबूझकर नजर अंदाज किया था। 2
दिसंबर की त्रासदी से बहुत पहले भी कारखाने में गैस का रिसाव
हो चुका था। इन घटनाओं में एक मजदूर की मौत हुई थी जबकि बहुत सारे घायल हुए थे।
सबूतों से पूरी तरह साफथा कि इस महाविनाश के लिए यूनियन कार्बाइड
ही दोषी है, लेकिन कंपनी ने अपनी गलती मानने से इनकार कर दिया।
इसके बाद शुरू हुई कानूनी लड़ाई में पीडि़तों की ओर से
सरकार ने यूनियन कार्बाइड के खिलाफ दीवानी मुकदमा दायर कर दिया। 1985 में सरकार ने
3 अरब डॉलर का मुआवजा माँगा था, लेकिन 1989 में केवल 47 करोड़ डालर के मुआवजे
पर अपनी सहमति दे दी। इस त्रासदी से जीवित बच निकलने वाले लोगों ने इस फैसले के
खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील की, मगर सर्वोच्च
न्यायालय ने भी इस फैसले में कोई बदलाव नहीं किया।
यूनियन कार्बाइड ने कारखाना तो बंद कर दिया, लेकिन भारी
मात्रा में विषैले रसायन वहीं छोड़ दिए। ये रसायन रिस-रिस कर शमीन में जा रहे हैं
जिससे वहाँ का पानी दूषित हो रहा है। अब यह संयंत्रा डाओ केमिकल नामक कंपनी के कब्जे
में है जो इसकी साफ-सफाई का जिम्मा उठाने को तैयार नहीं है।
31 साल बाद भी लोग न्याय के लिए संघर्ष कर रहे
हैं। वे पीने के सापफ पानी, स्वास्थ्य
सुविधाओं और यूनियन कार्बाइड के जहर से ग्रस्त लोगों के लिए नौकरियों की माँग कर
रहे हैं। उन्होंने यूनियन कार्बाइड के चेयरमैन एंडरसन को सशा दिलाने के लिए भी
आंदोलन चलाया है।
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