पशुपालन
पशुधन के प्रबंधन को पशुपालन कहते हैं। इसके अंतर्गत
बहुत-से कार्यऋ जैसे भोजन देना, प्रजनन तथा रोगों पर नियंत्राण करना आता है।
जनसंख्या ग्रोथ तथा रहन-सहन के स्तर में ग्रोथ के कारण अंडों, दूध तथा मांस की
खपत भी बढ़ रही है। पशुधन के लिए मानवीय
व्यवहार के प्रति जागरूकता होने के कारण पशुधन खेती में वुफछ नई परेशानियाँ भी आ
गई है। इसलिए पशुधन उत्पादन बढ़ाने व उसमें सुधार की आवश्यकता है।
पशु कृषि
पशुपालन के दो उद्देश्य हैं दूध देने वाले तथा कृषि कार्य ;हल चलाना, सिंचाई तथा बोझा
ढोनेद्ध के लिए पशुओं को पालना। भारतीय पालतू पशुओं की दो मुख्य स्पीशीश हैंः गाय ;वाॅस इंडिकसद्ध, भंैस ;वाॅस बुवेलिसद्ध।
दूध देने वाली मादाओं को दुधारू पशु कहते हैं।दूध उत्पादन, पशु के
दुग्धस्रवण के काल पर
वुफछ सीमा तक निर्भर करता है। जिसका अर्थ है बच्चे के जन्म
के पश्चात् दूध उत्पादन का समय काल। इस प्रकार दूध उत्पादन दुग्धस्रवण काल को
बढ़ाने से बढ़ सकता है। लंबे समय तक दुग्धस्रवण काल के लिए विदेशी नस्लों जैसे
जर्सी, ब्राउन स्विस का चुनाव करते हैं। देशी नस्लोंय जैसे-
रेडसिंधी, साहीवाल में रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत अधिक होती है। यदि
इन दोनों नस्लों में संकरण कराया जाए तो एक ऐसी संतति प्राप्त होगी जिसमें दोनों
ऐच्छिक गुण ;रोग प्रतिरोधक क्षमता व लंबा दुग्धस्रवण कालद्ध होंगे। उत्पादन की मात्रा मानवीय व्यवहार-आधारित
पशुपालन में पशुओं के स्वास्थ्य तथा स्वच्छ दूध उत्पादन के लिए गाय तथा भैंस के
शरीर की उचित सपफाई तथा आवास की आवश्यकता होती है। पशु के शरीर पर झड़े हुए बाल
तथा धूल को हटाने के लिए नियमित रूप से पशु की सपफाई करनी चाहिए। उनका आवास छतदार
तथा रोशनदान युक्त होना चाहिए। ऐसे आवास उन्हें वर्षा, गर्मी तथा सर्दी
से बचाते हैं। आवास का पफर्श ढलवा होना चाहिए जिससे कि वह सापफ और सूखा रहे।
दूध देने वाले पशु ;डेयरी पशुद्ध के आहार की आवश्यकता दो
प्रकार की होती हैः एक प्रकार
का आहार जो उसके स्वास्थ्य को अच्छा बनाए रखे तथा दूसरा वह जो
दूध उत्पादन को बढ़ाए। इसकी
आवश्यकता दुग्धस्रवण काल के समय होती है। पशु आहार के अंतर्गत
आते है मोटा चारा जो प्रायः मुख्यतः रेशे होते हैं तथा सांद्र जिनमें रेशे कम होते हैं
और प्रोटीन तथा अन्य पोषक तत्व अधिक होते हैं। पशु को एक संतुलित आहार की आवश्यकता
होती है जिसमें उचित मात्रा में सभी पोषक तत्व हों। ऐसे पोषक तत्वों के अतिरिक्त
वुफछ सूक्ष्म पोषक तत्व भी मिलाए जाते हैं जो दुधारू पशुओं को स्वस्थ रखते हैं तथा
दूध उत्पादन को बढ़ाते हैं।
पशु अनेक प्रकार के रोगों से ग्रसित हो सकते हैं जिनके कारण
उनकी दूध उत्पादन क्षमता में कमी अथवा उनकी मृत्यु भी हो सकती है। एक स्वस्थ पशु
नियमित रूप से खाता है और ठीक ढंग से बैठता व उठता है। पशु के बाह्य परजीवी तथा
अंतःपरजीवी दोनों ही होते हैं। बाह्य परजीवी त्वचा पर रहते हैं जिनसे पशु को त्वचा
रोग हो सकते हैं। अंतःपरजीवीऋ जैसे कीडे़, आमाशय तथा आँत को
तथा पर्ण कृमि ;पफलूकद्ध यकृत को प्रभावित करते हैं। संक्रामक रोग
बैक्टीरिया तथा वाइरस के कारण होते हैं। अनेक विषाणु तथा जीवाणु जनित रोगों से
पशुओं को बचाने के लिए टीका लगाया जाता है।
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