छोटी माता (Chicken Pox) रोग के लक्षण, कारण, बचाव




चिकन पॉक्स आम संक्रमण है जो एक विषाणु वैरिसेला वायरस (Varicella Virus) द्वारा उत्पन्न होता
है। 2 से 10 वर्ष आयु के बच्चे इससे सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। एक बार यह रोग हो जाने पर दुबारा यह रोग नहीं होता है तथा जीवन भर के लिये प्रतिरक्षात्मक शक्ति उत्पन्न हो जाती है। छोटी माता का प्रकोप अधिकतर शीत ऋतु में होता है तथा बंसत और गर्मी होने तक चलता है। यह रोग महामारी के रूप में भी फैलता है।
उद्भवन काल (Incubation Period)
आमतौर पर चिकन पॉक्स 14-16 दिनों तक रहता है परन्तु कभी-कभी यह 7 से 21 दिनों तक भी रहता है।
संक्रमण काल ; (Infaction Period)
चिकन पॉक्स का संक्रमण काल एक सप्ताह तक रहता है। यह रोग लाली के दिखाई देने के 2 दिन पहले से 5 दिन बाद तक संक्रामक रहता है। एक बार चिकन पॉक्स हो जाने पर पुनर्संक्रमण की संभावना न के बराबर होती है।
लक्षण (Symptoms)
1. चिकन पॉक्स में बुखार आता है और त्वचा पर गुलाबी रंग के दाने विकसित हो जाते हैं।
2. त्वचा पर गुलाबी रंग के दाने मुख्यतः शरीर के मध्य भाग में, सिर, गर्दन, पेट, पीठ छाती आदि  पर दिखाई देते हैं।
3. ये दाने एक जैसे नहीं दिखाई देते हैं। कुछ दाने बड़े और कुछ दाने छोटे विकसित होते हैं।
4  दाने शीघ्र ही पक जाते है तथा इनमे पानी जैसा द्रव्य भर जाता है जिससे यह बूँद की तरह दिखाई देते है।
5. तत्पश्चात् ये दाने सूखने लगते हैं और पपडि़याँ बनने लगती हैं।
6. दानों से बनी पपडि़याँ 12-14 दिनों में सूखकर खिरने लगती है। सूखी पपडि़याँ संक्रामक नहीं होती है।
7. चिकन पॉक्स के दाने त्वचा पर स्थायी निशान नहीं छोड़ते। समय के साथ निशान स्वतः ही समाप्त हो जाते है।
बचाव और उपचार
1. रोगी का पृथक्करण करना आवश्यक है। रोगी को अन्य लोगों से अलग रखना चाहिये।
2. रोग के फैलने से बचाव हेतु बच्चों को विद्यालय व बाल पालना गृह से दूर रखना चाहिये।
3. रोगी को छींकते तथा खाँसते समय नाक तथा मुँह पर कपड़ा रखना चाहिये।
4. रोगी के नाक तथा मुँह से निकले स्त्र्राव को जमीन में गाढ़ देना चाहिये।
5. चिकन पॉक्स का टीका नियमित टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल नहीं किया गया हैं। आवश्यकता
पड़ने पर 12 माह से अधिक आयु वाले शिशुओं को यह टीका एक खुराक के रूप में दिया जाता
है।
6. इस रोग के उपचार के लिये कोई दवा कारगर नहीं है लेकिन रोग के दौरान जटिलता उत्पन्न होने पर चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिये।
7. रोगी के उपयोग में ली गई सभी वस्तुओं को निसंक्रमित करना चाहिये।
8. गाँवों में इस रोग को देवी का प्रकोप माना जाता है तथा इस रोग से बचने के लिए किसी प्रकार का उपाय नहीं करते है अतः ग्रामीणों को रोग के बारे में विस्तृत जानकारी देनी चाहिये।
प्रतिरक्षण (Immunization)
इस रोग के लिये कोई विशेष प्रकार की सक्रिय वैक्सीन तैयार नहीं की गई है। वैरिसिल्ला जोस्टर
(Varicella Zoster) प्रतिरक्षण के लिये दिया जाता है।
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