हिंदी निबन्ध : राजस्थान और अकाल



राजस्थान में अकाल यानी फसल की बरबादी, खाली खेत खलिहान, सूखते सिमटते जलाशय,चारे पानी की तलाश में यत्र तत्र भटकते पशुपालक, रोटी रोजी की जुगाड़ में बेहाल आबादी तथासाँय साँय करता समूचा परिवेश। कभी अन्न काल तो कभी जल काल, कभी तृण काल; कभीतीनों की मार एक साथ। राजस्थान को पिछले 50 वर्षों में तीस वर्ष अकाल की काली छायामें गुजारने पड़े। ऐसा प्रतीत होता है कि राजस्थान और काल का जन्म जन्मान्तर का साथ है।सामान्यतः लोग अकाल का अर्थ वर्षा के न होने से लगाते हैं। परन्तु मेरे विचार से अकाल काअर्थ है - किसान के घर में फसल का न आना।
राजस्थान में अकाल का प्रमुख कारण समुचित वर्षा का न होना ही है। एक तो राजस्थानमरु प्रदेश है। यहाँ यथेष्ट मात्रा में वन नहीं है तथा ऐसे ऊँचे पहाड़ों का भी अभाव है जो आनेवाले मानसून को रोक सके। साथ ही और भी अनेक कारण हैं, जिनके कारण से किसान केघर फसल के अभाव में खाली ही पड़े रहते हैं। किसी क्षेत्र में बाढ़ आती है फलतः फसल बहजाती है तो कभी सर्दी में पड़ा पाला रातों रात फसल को बरबाद कर जीरा, मिर्ची, इसबगोलजैसी व्यापारिक फसलों को चटकर जाता है। अचानक ओलों की बौछार भी फसलों को रौंद कररख देती है। कभी कातरा उगती फसल को ही खा जाता है तो कभी टिड्डी दल का प्रहारपक्की पकाई फसल को चट कर जाता है।
साल दर साल सालने वाला अकाल राजस्थान की गरीब जनता में भुखमरी की स्थिति काप्रमुख कारण बन जाता है। कवि नागार्जुन की यह पंक्ति मानों राजस्थान की यथार्थ स्थिति काचित्रण करती प्रतीत होती है, यथा कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास।कविवरकन्हैयालाल सेठिया ने भी अपने शब्दों में अभिव्यक्ति दी कि पड्ग्यो बीखो, खावै खेजड़ा रा छोडा।आज भी आये दिन अखबारों में छपी भूख से मौतेंसरकार की नींद उड़ा देती है। अकाल कीमारी जनता जीविका निर्वाह हेतु पलायन को मजबूर हो जाती है। गाँव एवं ढाणियाँ खाली होजाती हैं। कवि ने ठीक ही कहा है कि
सुणर दकाळ भाग छूट्यो मानखो’,पड्या साव सूना, गाँव र गवाड़।’’
अतः अकाल के कारण भुखमरी के कारण यहाँ से पलायन करने की प्रवृत्ति राजस्थान केलिए स्थायी समस्या बन गई है। रोटी रोजी की जुगाड़ में लोग अपना घर बार छोड़ निकलपड़ते हैं। अकाल की मारी अधिकांश जनता अनैतिकता को अपनाने को मजबूर होती है, फलतःचोरी, लूट खसोट एवं डाका की घटनाएँ बढ़ जाती हैं। सामान्य व्यक्ति भी अकाल के मारे फसलोंके अभाव में ऋण भार से दबते जाते हैं, महँगाई की मार जनसामान्य की कमर ही तोड़ देतीहै। साथ ही चारे पानी के अभाव में पशुधन की हानि किसानों का जीना दूभर कर देती है। पीनेके पानी के अभाव में दूरदराज में 5-6 किलोमीटर दूरी से पानी लाने में ही नारी का दिन बीतजाता है।
इस अकाल के समाधान हेतु सरकार द्वारा सक्रिय होने पर अन्य विकास कार्य अवरूद्ध होजाते हैं। मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति में सारा सरकारी तन्त्र लग जाता है। महँगाई की मार,भुखमरी की स्थिति, बेरोजगारी आर्थिक तन्त्र को झकझोर कर रख देती है। जलाशय सूख जातेहैं, कुओं का पानी नीचे चला जाता है, कुपोषण के कारण रोग निरोधक शक्ति क्षीण हो जातीहै। महामारी की स्थिति बन जाती है। मरे पशुओं की हड्डियों के ढेर, दूर दूर तक उजाड़ साँय साँय करता वातावरण श्मशान का सा दृश्य उपस्थित कर देता है।
राजस्थान में अकाल का सामना करना कोई आसान काम नहीं है। आजादी के 55 वर्षों मेंकई सरकारें आईं और चली गईं। उन सरकारों ने अकाल से लोहा लिया परन्तु आज भी यहसमस्या ज्यों की त्यों बनी हुई हैं। करोड़ों रुपये के अकाल राहत कार्य कराये गये, कच्ची सड़केंबनी और आँधी में उड़ गयीं। कुएँ-तालाब खुदाए गये पर वे भी रेत में डूब गये। सरकार नेस्थायी समाधान हेतु स्थायी निर्माण के कार्य का बीड़ा उठाया, कतिपय स्थानों पर पाठशाला भवन,पंचायत भवन व पशुशालाएँ बनी, जो घटिया स्तर की सामग्री के कारण उपयोग में आने से पहलेही ढहने लगी। यदि सरकार अकाल का स्थायी समाधान चाहती है तो वर्षा के जल को सुरक्षितरखने की व्यवस्था करनी होगी, वहीं नये जल स्रोतों की खोज कर ट्यूब वैलों से पीने के पानीका समाधान करना होगा। साथ ही जन सामान्य को रोजगार उपलब्ध कराने हेतु लघु उद्योगोंकी पुनस्र्थापना करनी होगी। जिन क्षेत्रों में बाढ़ के कारण नुकसान हो रहा है उस पर नियन्त्रणकरने के साथ ही उस जल का संग्रहण करना होगा, कृषि के क्षेत्र में अनुसंधान द्वारा ऐसे बीजोंकी खोज करनी होगी, जो कम पानी में भी अच्छा उत्पादन दे सके। राजस्थान के मरु प्रदेशको हरा-भरा बनाना होगा, समय-समय पर कातरा व टिड्डी दल से मुकाबला करने हेतु पूर्व तैयारीकरनी होगी। केन्द्र सरकार को चाहिए कि इस प्राकृतिक आपदा को राष्ट्रीय आपदा मान उसकेस्थायी समाधान हेतु कारगर कदम उठाये। केन्द्र द्वारा समय रहते सहायता मिले तथा राज्य सरकारजन सहयोग से इसके समाधान हेतु कमर कसले तो वह दिन दूर नहीं जबकि राजस्थान का पर्यायबने इस अघोरीकाल पर नियन्त्रण पाया जा सके।
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