महँगाई: समस्या और समाधान : हिंदी निबन्ध



वर्तमान में भारत जिन आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा है उसमें महँगाई की मार सबसे अधिक भयावह, कष्टप्रद और घातक सिद्ध हो रही है। महँगाई के मारे आम आदमी का जीवनयापनमुश्किल हो गया है। कीमतें दिन दुनी रात चैगुनी सुरसा के मुँह की भाँति बढ़ती जा रही हैं,आम उपयोग की वस्तुओं के भाव आकाश को छू रहे हैं। मूल्यवृद्धि से निम्न एवं मध्यम वर्ग कीकमर ही टूट गई है, जन सामान्य का जीवन निर्वाह कठिन हो रहा है।
जब आवश्यक वस्तुओं की कीमतें इतनी बढ़ जाती हैं कि सामान्य व्यक्ति बढ़ी कीमतों परवस्तु खरीदने को विवश होता है तब उसे महँगाई की संज्ञा देते हैं। कभी व्यापारी वर्ग आवश्यक वस्तुओं का अभाव दिखलाकर चोरी-छिपे वस्तुओं को अधिक दाम पर बेचता है, और जन सामान्यउन कीमतों पर आवश्यक वस्तुएँ क्रय करता है तब वह महँगाई की मार का शिकार होता है।
महँगाई के कारणों का अवलोकन करें तो पाते हैं कि अनेक कारण हमारे सम्मुख आ खड़ेहोते हैं। भारत में जनसंख्या वृद्धि के कारण प्रतिवर्ष एक आस्ट्रेलिया जुड़ रहा है जबकि उत्पादन उस अनुपात में नहीं बढ़ रहा है। व्यापारी अपनी मुनाफाखोरी की प्रवृत्ति के कारण आवश्यक वस्तुओं का भण्डारण कर कृत्रिम अभाव पैदा कर मनमाने भाव वसूलने लगते हैं तो महँगाई का बाजारगरम होने लगता है। कालाधन और तस्करी ने वर्तमान अर्थव्यवस्था को पंगु बना दिया है। सार्वजनिक उद्योग निरन्तर घाटे में जा रहे हैं। देश पर लगभग 8 हजार करोड़ का विदेशी ऋणहै, फलतः देश का विदेशी मुद्राकोष खाली हो गया है। आर्थिक उन्नति के साथ नये स्थापित सरकारी संस्थानों के कारण सरकारी खजाने खाली हो रहे हैं, सरकारी खर्च बढ़ रहे हैं। प्रशासनमें व्याप्त भ्रष्टाचार, अकुशलता एवं वितरण की गलत प्रणाली भी महँगाई वृद्धि में सहायक बनरही है, क्योंकि अनावश्यक कण्ट्रोल एवं नियन्त्रण के कारण बाजार से आवश्यक वस्तुएँ गायब होजाती हैं एवं मनमाने भावों पर चोरी-छिपे बिकती हैं। सट्टेबाज एवं बिचैलिए भी कृत्रिम अभावपैदा कर देते हैं।
विदेशी मुद्रा प्राप्ति हेतु सरकार द्वारा आम वस्तुओं का निर्यात, समय समय पर सरकार द्वारालगाये जाने वाले कर, वाहनों के किराये में वृद्धि, सरकार का घाटे का बजट एवं ओवर ड्राफ्ट भी महँगाई को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक हैं। समय समय पर प्रकृति का प्रकोप, कभीअकाल के रूप में तो कभी बाढ़ के रूप में; कभी भूकम्प के रूप में तो कभी तूफान के रूपमें देश की अर्थव्यवस्था को चरमरा देता है। इतना ही नहीं बल्कि मजदूरों द्वारा अपनी माँगों केन मानने पर की जाने वाली हड़तालें एवं तालाबन्दी भी उत्पादन को प्रभावित करती है। देश कीराजनीतिक उथल पुथल एवं बदलती आर्थिक नीतियाँ, सीमावर्ती प्रदेशों में राजनीतिक अस्थिरता,उनसे युद्ध का भय, वहाँ से लाखों की संख्या में शरणार्थियों का आगमन तथा देश में जल्दीजल्दी होने वाले चुनावों में उद्योग पतियों से राजनीतिक दलों द्वारा अत्यधिक चन्दा वसूली हीउन्हें मनमानी कीमतों पर बेचने की खुली छूट दे देते हैं।
महँगाई का मारा सामान्य जन अपनी सीमित आय के कारण न भरपेट भोजन कर पाता हैऔर न ही तन ढकने को कपड़ा। कहते हैं आवश्यकता सब पापों की जननी है, मरता क्या नहींकरता। संस्कृत में भी कहा गया है कि बुभुक्षितं किंम न करोति पापम्। फलतः कर्मचारी वर्ग रिश्वतलेने को प्रवृत्त होता है तो व्यापारी वर्ग जमाखोरी और मुनाफाखोरी की ओर प्रवृत्त होता है। निम्न वर्ग नैतिकता को ताक में रखकर अनैतिकता एवं अपराध को अपनाता है। फलतः चोरी, डाका, लूट खसोट जैसी प्रवृत्तियाँ बढ़ जाती हैं। लोगों के जीवन स्तर में गिरावट आने लगती है, निर्धनता के प्रतिशत में बढ़ोतरी, समाज में असन्तोष, जीवन मूल्यों में गिरावट के साथ बचत के अभावमें राष्ट्रीय योजनाएँ आधी अधूरी रह जाती हैं, देश का आर्थिक विकास अवरूद्ध हो जाता है।कला, साहित्य, विज्ञान आदि की प्रगति रुक जाती है।
कविवर रामधारीसिंह दिनकरने कहा है कि है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमीके मग में; ठम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़, मानव जब जोर लगाता है,पत्थर पानी बन जाता है।’’ अर्थात् दुनिया में कोई कार्य असंभव नहीं है। हर समस्या का समाधानाान किया जा सकता है तो फिर वह महँगाई ही क्यों न हो, उस पर नियन्त्रण पाया जा सकताहै; किन्तु इस हेतु जहाँ एक ओर सरकार सक्रिय होकर मुद्रा प्रसार को रोके, आवश्यक वस्तुओंहेतु सस्ते मूल्य की दुकानें खोले, आवश्यक वस्तुओं का स्वयं भण्डारण करे, कर-वंचकों, जमाखोरोंकी धर पकड़ कर कठोर कार्यवाही करे तथा कठोर सजा का प्रावधान रखे, बैंकों को निर्देश देकि वे जमाखोरों, सट्टेबाजों, मुनाफाखोरों एवं कृत्रिम अभाव पैदा करने वालों को बैंकों से धनउपलब्ध न कराये, सरकारी कर्मचारियों का समय समय पर महँगाई भत्ता बढ़ाने की अपेक्षा उसपर नियन्त्रण करे, आवश्यकतानुसार बड़े नोटों का विमुद्रीकरण कर काले धन पर नियन्त्रण रखे।इतना ही नहीं सरकार द्वारा स्टाॅक की अधिकतम सीमा निर्धारित की जाय, दोहरी मूल्य प्रणाली का आवश्यकतानुसार उपयोग करे, प्रशासनिक व्यय में कमी की जाय, लागतमूल्य एवं विक्रयमूल्यमें न्यायोचित सन्तुलन तय किया जाय, व्यापारियों से चन्दा वसूली हेतु राजनीतिक दलों पर रोकलगाये, अधिक मूल्य दबाव वाली वस्तुओं का समय पर आयात करे तथा साथ ही जनसंख्या परनियन्त्रण हेतु परिवार कल्याण कार्यक्रम की ओर विशेष ध्यान दे, माँग व पूर्ति के अनुसार हीउत्पादन का आधार तैयार करे तो निश्चय ही महँगाई को रोका जा सकता है।
केवल सरकारी प्रयत्नों से इस पर विजय पाना आसान नहीं है, आवश्यकता है जन सामान्यको आगे आने की, जन चेतना जाग्रत करने की, अपने नैतिक एवं राष्ट्रीय चरित्र का विकास करनेकी। यदि देशवासियों में स्वदेशी के प्रति रुचि एवं विदेशी वस्तुओं के प्रति अरुचि जगेगी,कालाबाजारी करने वालों एवं भण्डारण करने वालों का पर्दाफाश होगा सरकार वस्तुओं के अभावकी आशंका में स्वयं अनावश्यक भण्डारण न करेगी, काला बाजारी से वस्तुएँ नहीं खरीदेगी तथाछोटा परिवारः सुखी परिवारके सिद्धान्त को अपनायेगी तो इस समस्या का समाधान अवश्य होगा, इसमें कोई शंका नहीं। अतः सरकार एवं जनता के पारस्परिक सहयोग से इन दिन दूनी रात चैगुनी बढ़ती कीमतों पर नियन्त्रण पाया जा सकता है।
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