अतिसार (Diarrhoea) रोग के लक्षण, कारण, बचाव



दस्त में बच्चा सामान्य से अधिक बार मल त्याग करने लगता है। मल त्याग करने की बारम्बारताधीरे-धीरे बढ़ने लगती है, बच्चा दिन में 10-12 या उससे भी अधिक बार मल त्याग करता है। दस्त चावलके पानी के समान पतले तथा सफेद रंग के होते हैं। अतिसार की स्थिति में मल के साथ-साथ श्लेष्माव खून का निष्कासन भी होता है। बच्चों में दस्त या अतिसार का कारण रोगों के कीटाणुओं का जल,भोजन या अन्य माध्यम से बच्चे के पेट में पहुँच कर अपनी वृद्धि करना है। ये कीटाणु, आँतों की श्लेष्मिकझिल्ली को असामान्य कर देते हैं। झिल्ली सूज जाती है तथा भोजन का पाचन व अवशोषण सामान्यरूप से नहीं हो पाता है फलतः बच्चे को दस्त लगने लगते हैं। सात-आठ माह के बच्चों में इस समस्याकी संभावना ज्यादा होती है।


कारण:
1. बच्चा जब 6-7 माह का हो जाता है तो उसे आहार के रूप में ऊपरी दूध, फलों का रस, दलिया, खिचड़ी, सूप तथा बाज़ार में उपलब्ध बने बनाये भोज्य पदार्थ जैसे सैरेलेक, फेरेक्स इत्यादि देना प्रारम्भ किया जाता है। इन पूरक आहारों को तैयार करते एवं खिलाते समय स्वच्छ पानी या बर्तनों का इस्तेमाल नहीं किया जाये तो इनमें उपस्थित कीटाणु भोजन के साथ-साथ बच्चे के पेट में पहुँच जाते हैं और बच्चे को दस्त लग जाते हैं।
2. इस उम्र के दौरान बच्चों के दाँत निकलने के कारण मसूड़ों में दर्द होने लगता है। बच्चा आसपास पड़े सामान या खिलौनो को मुँह में डालकर मसूड़ों में दबाने लगता है। ऐसा करने पर हालांकि उसे आराम मिलता है लेकिन खिलौनों व सामान पर लगी धूल मिट्टी में उपस्थित रोग के कीटाणु बच्चे के पेट में पहुँच कर संक्रमण कर देते हैं।
3. इस उम्र के दौरान बच्चा बैठने लगता है तथा घुटने के बल चलने का प्रयास करता है। ऐसा करने पर बच्चे के हाथों, पैरों व कपड़ों पर गन्दगी लग जाती है। जब बच्चा इन्हें मुँह में लेता है तो गन्दगी के साथ कीटाणु भी पेट में पहुँच जाते हैं और बच्चे को दस्त लगने लगते हैं।


बचाव और उपचार
1. पूरक आहार स्वच्छ जल, बर्तन व स्वच्छ हाथों से तैयार करें।
2. पूरक आहार ताज़ा बनाकर ही खिलायें।
3. पूरक आहार आवश्यकतानुसार ही बनायें। पहले से तैयार करके रखा हुआ पूरक आहार बच्चे को न खिलायें क्योंकि इन भोज्य पदार्थों में विभिन्न कीटाणुओं की वृद्धि की सम्भावना बढ़ जाती है।
4. घर, बच्चे व उसके खिलौनों की स्वच्छता का ध्यान रखें।
5. बच्चे को गन्दे हाथ, कपड़े या खिलौने मुँह में न लेने दें।
6. दाँत निकलने के समय उसे कड़क पूरक आहार जैसे बिस्कुट, मठरी आदि खाने को दें ताकि उन्हें वह मसूड़ों के बीच दबा सके और उसके मसूड़ों को आराम मिले।
7. यदि बच्चे को दस्त हो गये हों तो तुरन्त उपचार के लिये डाॅक्टर की सलाह लें
तथा निम्न बिन्दुओं का पालन करें:
(अ) बच्चे को स्तनपान कराते रहें क्योंकि माँ का दूध बहुत पौष्टिक होता है तथा इसमें विभिन्न रोगों से लड़ने की शक्ति होती है।
(ब) बच्चे को तरल पदार्थ जैसे शिकंजी, छाछ, सूप, दाल, चावल का पानी, फलों का रस थोड़ी-थोड़ी देर में या करीब आधे घन्टे के अन्तराल से देते रहना चाहिये। इनको बनाते वक्त स्वच्छता का पूर्ण रूप से ध्यान रखें।
(स) आंगनवाड़ी केन्द्र व बाजार में उपलब्ध ओ.आर.एस. (ओरल रिहाइड्रेशन सोल्युशन) पाउडर से
घोल बनाकर बच्चे को पिलायें। घोल बनाने के लिये स्वच्छ बर्तन में 1 लीटर पानी उबालें तथा ठण्डा होने पर इसमें ओ.आर.एस. के एक पैकेट को खोलकर पाउडर अच्छी तरह मिलायें। स्वच्छ चम्मच से यह घोल थोड़ी-थोड़ी देर या हर आधे घन्टे से बच्चे को पिलायें। इस घोल को पिलाने से दस्त तो नियन्त्रित होते ही हैं साथ ही उसके शरीर में जल एवं लवण का सन्तुलन भी बना रहता है तथा बच्चे की भूख भी बढ़ती है। ओ.आर.एस. के एक लीटर पानी में सोडियम क्लोराइड 3.5 ग्राम, सोडियम बाई कार्बोनेट 2.5 ग्राम, पोटेशियम क्लारोइड 1.5 ग्राम और ग्लूकोज़ 20 ग्राम होता है। (ओ.आर.एस. का घोल बनाने व पिलाने से पूर्व पैकेट पर लिखे निर्देश सावधानी पूर्वक पढ़ें।) यदि दस्त का उपचार समय रहते नहीं किया जायेगा तो बच्चे के शरीर में पानी की कमी हो जायेगी तथा बच्चा निर्जलीकरण ;क्मीलकतंजपवदद्ध से ग्रस्त हो जायेगा और अन्त में उसकी मृत्यु हो जायेगी।
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