दहेज दानव पर हिंदी निबन्ध For School Speech

 दहेज दानव Full Speech या निबन्ध -
टन की घंटी बजी। इसी के साथ आवाज सुनाई दी बाबूजी! पेपर। अखबार हाथ में लेतेही दृष्टि सर्व प्रथम बड़े अक्षरों में छपी उस खबर पर गयी दहेज-दानव की बलिवेदी पर एकओर भेंट। साथ ही उसके नीचे छपे उस छायाचित्र को देखकर तो मेरे रौंगटे खड़े हो गये, मैंकाँप सा गया। एक दृश्य मेरी आँखों के आगे छा गया कि दहेज दानव दिन-ब-दिन नवयुवतियों,नव विवाहिताओं को अपना शिकार बनाता खूब फल फूल रहा है। हर जाति एवं समाज में अपने पैर पसार रहा है। वह दिन कब आयेगा जब इस दहेज-दानव का अन्त संभव होगा ? साथही यह प्रश्न भी बिजली की तरह कौंध गया कि किस शुभ घड़ी में इसका जन्म हुआ कि आजइसकी पाँचों अंगुलियाँ घी में हैं। लोग एक दूसरे से होड़ में लगे इसका पोषण कर रहे हैं।
शायद किसी पिता ने अपने पुत्रों के साथ अपनी पुत्री को भी उसका हक देना चाहा होगा,उसी दिन इस रक्तबीज का जन्म हुआ होगा या किसी पुत्रहीन पिता ने अपनी सम्पत्ति स्वेच्छासे विवाह के अवसर पर अपनी पुत्री को दी होगी, उसी कन्यादान की घड़ी में इस दनुज कीउत्पत्ति हुई होगी या फिर पुत्र के लोभी पिता ने किसी रईस कन्या के पिता के सम्मुख अपनीलोभी प्रवृत्ति का परिचय देते हुए धनराशि (जिसमें बच्चे के पालन पोषण एवं पढ़ाई के खर्च) कीमाँग की होगी तो इस राक्षस ने जन्म लिया हो। जब से विवाह के अवसर पर आवश्यक गृहकार्यकी वस्तुएँ एवं धन राशि सोना चाँदी भेंट की तब से इसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। फलतःआज भी इसकी तूती बोल रही है, दूल्हे बिक रहे हैं और यह दानव सोना, चाँदी, कार, बंगलेके साथ फल फूल रहा है।
दहेज दानव के इस प्रकार बने रहने के कारणों का अवलोकन करते हैं तो पाते हैं कि आजहर पुत्री का पिता अपनी पुत्री के लिए अच्छे वर की कामना करता है, इसके मूल में है। अच्छे वर यानी आई.ए.एस., आई.पी.एस., डाॅक्टर व इंजीनियरों की संख्या कम होने के कारण माँग वपूर्ति के सिद्धान्तानुसार अच्छे वरों की कीमतों में दिन प्रति दिन वृद्धि हो रही है। कतिपय पिताअपनी पुत्री के लिए अच्छे घर की कामना करते हैं, जिससे अच्छे घर वाले अपनी हैसियत केअनुसार शादी का प्रस्ताव रख दहेज दानव की नींव मजबूत कर देते हैं। भारतीय समाज में नारीका पुरुष पर आश्रित होना, विवाह की अनिवार्यता तथा कन्याओं की अधिकता दहेज दानव कोसदैव बनाये रखने में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं, और पुत्र के लोभी पिता की इच्छा पूर्ति हेतुपुत्री के पिता को यथेष्ट मात्रा में दहेज देने को विवश होना पड़ता है। आज के भौतिकवादीयुग में युवतियाँ स्वयं सुखी जीवन यापन करने हेतु अपने पिता की आर्थिक स्थिति की चिन्ताकिये बिना पिता के सम्मुख लम्बी चैड़ी फरमाइश कर दहेज दानव का भरण पोषण कररही है।दहेज दानव अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए नव वधुओं को सास ननद के अत्याचारोंकी चक्की में पीस उन्हें आत्महत्याओं के लिए विवश कर रहा है। अतः नारी ही नारी की शोषकबन निर्मम वेदनाओं के द्वारा घर रूपी स्वर्ग को नरक बना रही है। कहीं अमेल विवाह का बाजारगरम है, तो कहीं बाल विवाह, बहु विवाह एवं वेश्यावृत्ति जैसी बुराइयों का कारण बन गया है।दहेज के चक्कर में पुत्री का पिता कहीं ऋण भार में दबा जा रहा है वहीं कहीं भ्रष्टाचार कीराह चल जेल की हवा खा रहा है। कन्यावध तथा भ्रूण हत्या जैसे घिनौने कृत्य का खून इस दानव के मुँह लग चुका है। फलतः कन्या जन्म एक भार बन कर रह गया; वहीं विवाह विच्छेदतथा दहेज की दरकार के विरुद्ध मुकदमों का ग्राफ आकाश की ऊँचाइयों को छू रहा है।
वैसे दहेज-दानव का संहार एक व्यक्ति के वश की बात नहीं रही है। इस के वध हेतु पहलीआवश्यकता है कि हर बेटे वाला यह समझे कि वह बेटी वाला भी है। इससे न दहेज लो औरन दहेज दो की स्थिति बन सकती है। आज कल सामूहिक विवाह का प्रचलन भी दहेज दानवके मुँह पर करारी चोट सिद्ध हो सकती है किन्तु इसके लिए बड़े लोगों को आगे आने कीआवश्यकता है। साथ ही सरकार भी इस दहेज दानव से दो दो हाथ करने हेतु प्रयत्नशील हैऔर कठोर कानून व दण्ड का प्रावधान किया जा रहा है, इससे संबंधित कानूनों में यथावश्यकपरिवर्तन संशोधन किया जा रहा है। युवक-युवतियों को स्वयं आगे आना होगा, अन्तर्जातीय विवाहतथा कोर्ट मैरेज को अपनाना होगा, बुजुर्गों एवं युवक-युवतियों को अपने विचारों में परिवर्तन करनाहोगा, नारी को शिक्षित बन आत्मनिर्भर होना होगा। यदि ऐसा हुआ तो दहेज दानव को दुम दबाकर भागना होगा इसमें कोई शक नहीं।
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