ज्वार की खेती : किस्म, खरपतवार और उपज



ज्वार का क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत में तीसरा स्थान है। इसको अधिकतर बारानी मृदाओं में
बोया जाता है। दक्षिण भारत में ज्वार की खेती रबी एवं खरीफ दोनों ऋतुओं में करते है। इसके हरे
चारे (साइलेज) एवं सूखे चारे का पशुओं को खिलाये जाने के उपयोग में लिया जाता है। ज्वार में
पायी जाने वाली प्रोटीन में अमीनों अम्लों की मात्रा 1.40 से 2.80 प्रतिशत पायी जाती है। ज्वार के
दानों को एल्कोहल बनाने एवं अडहेसिव के रूप में भी काम लिया जाता है। इसके कच्चे पौधों में
भ्ब्छ की मात्रा अधिक पायी जाती है जो पशुओं के लिए हानिकारक रहती है। ज्वार की खेती
महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेश, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, छतीसगढ़ आदि राज्यों में अधिक की जाती है। इसकी
खेती के गर्म एवं शुष्क जलवायु की आवश्यकता रहती है। ज्वार में चारे के लिए सी.एस.वी.
10,11,13,15 एवं एस.पी.वी. 235,245,462475 किस्में उत्तम मानी गयी है। ज्वार की फसल में
क्रमश 60,50 एवं 40 किलोग्राम नाइट्रोजन फास्फोरस तथा पोटाश की मात्रा दी जाती है। खरपतवार
नियन्त्रण के लिए निराई गुड़ाई एवं खरपतवारनाशी का उपयोग भी आवश्यकतानुसार किया जाता
है। फसल में लगने वाले रोगों एवं कीटों के रोकथाम के लिए विभिन्न कीटनाशी दवाओं को समय
समय पर उपयोग किया जाना भी आवश्यक है। इसकी औसत उपज 30-40 क्विंटल प्रति हैक्टेयर
रहती है।
Previous
Next Post »

आपके योगदान के लिए धन्यवाद! ConversionConversion EmoticonEmoticon